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उववाइय सुत्तं सू० ४० चिन्तन, गवेषण-व्यतिरेक धर्मोन्मुख चिन्तन-पदार्थ में जो धर्म नहीं है, उनके आलोचन रूप बुद्धि-ऐसा चिन्तन करते हुए उसको ( अम्बड़ परिव्राजक को ) किसी दिन वीयं-लब्धि-शक्ति विशेष, वैक्रिय-लब्धिभन्न-भिन्न रूप बनाने का सामर्थ्य, तथा अवधिज्ञान रूपी पदार्थों को सीधे आत्मा द्वारा जानने की विशेष योग्यता प्राप्त हो गई है। इसलिये जन-विस्मापन हेतु-मनुष्यों को आश्चर्यचकित करने के लिये, इनके द्वारा वह काम्पिल्यपुर में एक ही समय में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। गौतम ! यही वस्तुस्थिति है। अतएव अम्बड़ परिव्राजक के सम्बन्ध में- सौ घरों में आहार करने एवं सौ घरों में निवास करने की बात कही जाती है।
Gautama : Bhante! Why do you say so ?
Mahavira : Gautama ! Because of his inherent humility, till politeness, because of his incessant fasting missing six meals at a time, because of his hard penance with hands raised skyward and face turned towards the sun from an elevated ground, Amvada has auspicious outcome, wholesome perseverance and purified tinges by dint of which he is able to exhaust and tranquilise his karma enshrounding extrasensory knowledge, to acquire knowledge to enquire and knowledge to stabilise, knowledge about the nature of things and about non-nature of things, and this gives him power to act with valour and to transform and with them, extrasensory knowledge. Having acquired these powers plus extra sensory knowledge, Amvada, in order to stupefy people, takes food from a hundred homes, till resides in a hundred homes. Hence I say, till in a hundred homes.
गौतम : पह णं भंते ! अम्मडे परिव्वायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ?
महावीर--णो इण? सम?', गोयमा ! अम्मडे णं परिव्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव...अप्पाणं भावमाणे
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