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कंपिल्लपुरे णयरे घरसते आहारमाहरेइ ; घरसए सहि उवेइ । से कह मेयं भंते ! एवं ?
वायत्तं सू
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महावीर : गोयमा ! जण्णं से बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव...एवं परूवेइ - एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव... घरसए वसहि उवेइ सच्चे णं एसम े । अहं पिणं गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव...एवं परूवेमि - एवं खलु अम्मडे परिव्वायए जाव... बसह उवेइ ।
गौतम : हे भगवन् ! बहुत से व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे से इस प्रकार कहते हैं, विशेष रूप से बोलते हैं, बतलाते हैं कि अम्बड़ परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है । वह सौ घरों में निवास करता है । अर्थात् वह एक ही समय में सौ घरों में आहार करता हुआ एवं सौ घरों में निवास करता हुआ देखा जाता है । तो क्या भगवन् ! यह बात ऐसी ही है ?
महावीर : गौतम ! बहुत से मनुष्य परस्पर में एक-दूसरे से जो इस प्रकार कहते हैं, बोलते हैं, ज्ञापित करते हैं- बतलाते हैं कि अम्बड़ परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है - यह बात सत्य है । गौतम ! में भी ऐसा ही कहता हूँ, प्ररूपित करता हूँ ।
Gautama : Bhante! Many say like this, assert this, propound this, establish this that Amvada Parivrajaka takes his food from a hundred households in Kampilyapura and lives in a hundred homes. So, Bhante 1 How is it ?
Mahavira Gautama! What many people say about Amvada's living in a hundred homes, etc, is correct. I too say like this, till establish this, till in a hundred homes.