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________________ .Uvavaiya Suttam Su. 20 से किं तं पसत्थकाय विणए ? .. पसत्थकाय विणए एवं चेव पसत्थं भाणियव्वं । से तं पसत्थकाय विणए। से तं काय विणए । वह प्रशस्त काय विनय क्या है ? - प्रशस्त काय विनय को अप्रशस्त काय विनय के आधार पर समझ लेना चाहिये। अर्थात् अप्रशस्त काय विनय में जहाँ प्रत्येक क्रिया · के साथ असावधानी जुड़ी रहती है वहां प्रशस्त काय विनय में क्रिया के साथ सावधानीजागरुकता जुड़ी रहती है। यह प्रशस्त काय विनय है। इस प्रकार यह काय विनय का स्वरूप कहा गया है । What is wholesome humility of the body ? Just the reverse of the aforesaid items. से किं तं लोगोवयारविणए ? लोगोवयारविणए सत्तविहे पण्णत्ते । तं जहा-अब्भासवत्तियं परच्छंदाणुवत्तियं कज्जहेउं कयपडिकिरिया अत्त-गवेषणया देसकालण्णुया सव्वद्रुसु अपडिलोमया ।. से तं लोगोवयारविणए । से तं विणए । वह लोकोपचार विनय क्या है ? उसके कितने भेद हैं ? लोकोपचार विनय सात प्रकार का बतलाया गया है जो इस प्रकार है : (१) अभ्यासवर्तिता-गुरुजनों, सत्पुरुषों के सान्निध्य या समीप में बैठना, (२) परच्छदानुवर्तिता-गुरुजनों, पूज्यजनों की इच्छा के अनुसार प्रवृत्ति करना, (३) कार्य हेतु-ज्ञान आदि प्राप्त करने के लिये या जिनसे ज्ञानार्जन किया उनकी सेवा करना, (४) कृत-प्रतिक्रिया अपने प्रति किये गये उपकारों को स्मरण रख कर, उनके लिये कृतज्ञता अनुभव करते हुए उपकारी पुरुषों की परिचर्या करना, (५) आर्त गवेषणता-वृद्धावस्था, रुग्णता से पीड़ित गुरुजनों, संयमी पुरुषों की सार-सम्भाल तथा औषधि, पथ्य
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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