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प्रथम संस्करण का
प्रकाशकीय
जवाहर किरणावली की ३२वीं किरण प्रकाशित करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता होती है । महामहिम स्व० पूज्य श्री जवाहराचार्य जैन समाज के महान् सन्त थे । उनकी ओजस्वी वाणी ने जन-जन के हृदय को उद्वेलित और प्रभावित किया था । उनके प्रभावजनक उपदेशों से सहस्रों व्यक्तियों का जीवन परिवर्तित हो गया था । लाखों को नई प्रेरणा और नई दिशा का ज्ञान हुआ था । उनके बहुमूल्य व्याख्यान " जवाहर किरणावली" के नाम से प्रकाशित हुए हैं । प्रस्तुत प्रकाशन उसी शृङ्खला की एक कड़ी है ।
इससे पूर्व प्रकाशित पुस्तक में सम्यग्दर्शन संबंधी व्याख्यान पहले प्रकाश में नहीं आये थे । बारह व्रत रतलाम मंडल की ओर से छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के रूप में प्रकाशित हुए थे । उन सबको एक ही साथ प्रकाशित करने की आवश्यकता थी । उनमें भाषा सम्बन्धी संस्कार की भी आवश्यकता थी और पूज्य श्री के संगृहीत लिखित साहित्य के आधार पर कतिपय विषयों की वृद्धि की भी आवश्यकता थी । वह कार्य इस संस्करण में किया गया है । उदाहरणार्थषडावश्यक गृहस्थ-धर्म का एक अनिवार्य अंग है । उस पर पूज्य श्री ने अपने व्याख्यानों में हृदयग्राही विवेचन किया