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... (३१६) । अपनी इच्छा को रोक लेना ही इच्छा परिमाण व्रत है।
अब देखना है कि इस व्रत को स्वीकार करने वाला किन-किन पदार्थों के विषय में मर्यादा करता है। इसके लिए शास्त्रकारों ने परिग्रह के दो भेद कर दिये हैं-सचित्त परिग्रह और अचित्त परिग्रह । सचित्त परिग्रह उस सांसारिक पदार्थ या पदार्थों का नाम है जिसके भीतर जान है । जैसे मनुष्य पशु-पक्षी पृथ्वी वनस्पति आदि । इसमें कुटुम्ब के लोग, दास-दासी, हाथी घोड़े गाय बैल, भैंस आदि पशु कीर मोर चकोर आदि पक्षी, किसी और प्रकार के जीव, भूमि नदी तालाब वृक्ष अन्न आदि वे सभी प्रकार की वस्तुएं आ जाती हैं, जिन में जीव है । जो पदार्थ इस भेद में आने से शेष रह जाते हैं, यानी जो जानदार नहीं हैं उनकी गणना अचित्त परिग्रह में है । सोना चांदी वस्त्र पात्र औषध भेषज घर हाट नोहरा बरतन आदि समस्त पदार्थ जो निर्जीव हैं, अचित्त परिग्रह में हैं । ... संसार में जितने भी पदार्थ हैं, वे या तो सचित्त हैं या अचित्त हैं। इन दोनों भेदों में सभी पदार्थ आ जाते हैं। इसलिए इच्छा परिमाण व्रत स्वीकार करने वाला संसार के समस्त पदार्थों के विषय में यह नियम करता है कि मैं अमुक पदार्थ इस परिमाण से अधिक अपने अधिकार में न रखूगा अथवा अमुक पदार्थ अपने अधिकार में रखूगा ही नहीं और इस परिमाण से अधिक की इच्छा भी न करूंगा।
जन साधारण की सुविधा के लिए शास्त्रकारों ने सचित्त और अचित्त परिग्रह को नव भागों में विभक्त कर दिया है । वे नव भेद, 'नव प्रकार का परिग्रह' नाम से