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लोग, दूसरे राजा के देशों को नष्ट करके धन हरण करने के लिये, युद्ध के निमित्त चतुरंगिणी सेना सजा और 'पहिले मैं ही विजय कर लूं ' ऐसा दर्प रखने वाले उत्तम योद्धानों को लेकर तथा व्यूह बना कर, दूसरे के बल को नष्ट करके उसका हरण करते हैं ।
और भी कहा गया है कि - अनुकम्पा और परलोक के डर से रहित चोर लोग, ग्राम, नगर, खदान, आश्रम, श्रादि तथा समृद्ध देशों को लूट लेते हैं और उन्हें नष्ट कर डालते हैं । चोरी करने में स्थिर हृदय और दारुण बुद्धि वाले निर्लज्ज लोग, लोगों के घर में सेंध फोड़ कर, घर में रखे हुए धन-धान्यादि का हरण करते हैं और सोये हुए गाफिल लोगों को लूट लेते हैं। धन की खोज में ऐसे लोग, काल - काल में और जाने न जाने योग्य स्थान का बिचार नहीं करते, किन्तु जहां रक्त की कीच हो रही है, मृतकों के शव रक्त से भीगे पड़े हैं, प्रेत, डाकिनी - शाकिनी आदि घूमती हैं और शृगाल, उलूकादि भयानक पशु-पक्षी शब्द करते हैंऐसे घोर श्मशानों में, सूने मकानों में, पर्वत की गुफाओं में तथा जहां सर्पादि भयंकर जानवर रहते हैं, ऐसे विषम जंगलों में रह कर, शीत ताप की पीड़ा सहते हैं और यही चिन्ता किया करते हैं कि किसी का धन हरण करें। ऐसे स्थानों में रहते हुए, ये लोग भूख लगने पर कभी तो लड्डू भात मदिरा आदि का भोजन - पान करते हैं और कभी कन्दमूल, मृतक - शरीर या जो कुछ मिल जावे, वही खा लेते हैं । जिस प्रकार भेड़िया खून की तलाश में इधर-उधर घूमता फिरता है, उसी प्रकार चोर लोग भी पराये धन की तलाश में इधर-उधर घूमते-फिरते हैं और नरक तिर्यंच योनि में