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परिशिष्ट
भासा (समिक)
भासावग्गणा
भिक्खायरिया
मक्कार
मणगुप्त
मणपज्जवणाण
मणवग्गणा
मणोमाणसिय
मतिसंपया
महव्वय
महाणिज्जरा
महापज्जवसाण
महापाप
महाभद्द
: संयम पूर्वक बोलना ।
: बोलने में सहायक होने वाले रूविकाय
पुद्गल ।
मिक्षा |
रसपरिच्चाअ
(६) झाण
: यौगलिक युग की दंडनीति-मत
करो, इस प्रकार का कथन ।
: मन का निग्रह करने वाला । : संज्ञी जीव के मानसिक भावों को
हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह - इन पापकारी प्रवृत्तियों का पूर्णतः प्रत्याख्यान |
: कर्मों का विपुल मात्र में क्षय । अपुनर्भरण |
•
प्राण साधना का विशिष्ट प्रयोग |
: चार दिन के ऊर्ध्व कायोत्सर्ग में की
जानेवाली तपस्या और साधना । मिच्छकार ( सामायारी) भूल होने पर स्वयं उसकी आलोचना करना ।
साक्षात् जानने वाला ज्ञान ।
चिंतन में सहायक होने वाले पुद्गल
:
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द्रव्य ।
मानसिक भाव ।
बुद्धिकौशल ।
': विपरीत तत्त्व श्रद्धा ।
मिच्छत्त मिच्छादंसणसल्ल : विपरीत श्रद्धा से बंधने वाला
पापकर्म ।
मिच्छाविठि
मुत्त
मोक्ख मोह/ मोहणिज्ज : मोहनीय कर्म ।
रयहरण
तत्त्व में विपरीत श्रद्धा रखने वाली जीव की अवस्था ।
मूर्त-वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्शयुक्त पदार्थ ।
: जीव की कर्म मुक्त अवस्था ।
: प्रमार्जन के काम आनेवाला मुनि का
एक उपकरण - रजोहरण ।
दूध, दही आदि विकृतियों का
परित्याग ।
:
भौतिक विषयों की सुरक्षा के लिए
तथा हिंसा, असत्य, चोरी आदि
लोग
लिंग
लोगट्ठिति
लोय
वद
वयगुप्त वयणसंपया
ववहार
ववहार (णय)
बसुमं
बाउजीव
वायणा
वायणासंपया
वासरत
वासावास
विउलमह
विउब्ववग्गणा
विउस्सग्ग
विगड़
विगलिंदिय
विपरिणामण
वियट्टभोह
बिरति
विरयाविरय
आत्मा का दर्शन
दुष्प्रवृत्तियों से अनुबंधित चिंतन |
: वर्ण, गंध, रस और स्पर्श युक्त पदार्थ |
जिसमें धर्म, अधर्म, आकाश,
काल, पुद्गल और जीव-छह द्रव्य
हौं ।
: मुनि का वेश ।
: लोक व्यवस्था।
: केशों का अपनयन |
: व्रत ।
: वचन का निग्रह करनेवाला । वचन कौशल।
जैन श्रमण संघ में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति की हेतुभूत व्यवस्था ।
: भेद के आधार पर तत्त्व का प्रतिपादन करने वाला अभिप्राय ।
: संयमी ।
: जिन जीवों का शरीर वायु है।
: अध्यापन ।
: अध्यापन कौशल।
चातुर्मास । चातुर्मास ।
:
: विशेष मानसिक अवस्थाओं का
बोध करने वाला सजातीय पुद्गल
मनः पर्यवज्ञान - मानसज्ञान | : वैक्रिय शरीर के रूप में परिणत होने वाला सजातीय पुद्गल समूह | शरीर की प्रवृत्ति को छोड़ना। : दूध, दही, मिठाई आदि पदार्थ । : दो, तीन एवं चार इन्द्रिय वाले जीव ।
: क्षय, क्षयोपशम, उद्वर्तन,
अपवर्तन आदि के द्वारा कर्म स्कंधों
में नई-नई अवस्थाएं उत्पन्न करना ।
: प्रतिदिन भोजन करनेवाला।
: त्याग ।
: संयम और असंयम - दोनों से युक्त जीव की अवस्था ।