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जिन्होंने आगमों को हिन्दी टोकायें लिखने का मार्ग प्रशस्त किया जिन्होंने प्राकृत के साथ संस्कृत को भी इसलिये विशेष महत्त्व दिया जिससे अजन विद्वान् भी जैनागमों की पहन मान-राशि को प्राप्त कर सकें .... जिनकी लेखनी मे आगमों के गहन गम्भीर रहस्यों को उद्घाटित किया और
. जैनागमों को सर्वजन-सुलभ बनाया जिनका समस्त जीवन भुत-सेवा के लिये समर्पित रहा
.. उन्हीं श्रद्धेय श्रमग-भेष्ठ आचार्य-सम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के कर-कमलों में "तुभ्यं वस्तु हे देव! तुभ्यमेव समर्पये" - की भावना के साथ सावर समर्पित
साध्वी स्वर्ण कान्ता