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वर्ग-पंचम )
(३६७)
[निरयावलिका
बयालीस भक्तों (प्रात:-सायं के भोजनों) का उपवास व्रत द्वारा छेदन करके पाप-स्थानों को आलोचना एवं प्रतिक्रमण करते हुए, समाधि-पूर्वक मृत्यु का समय आने पर प्राणों को त्याग कर ऊर्ध्व लोक में चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र एवं तारा रूप ज्योतिष्क देव विमानों सौधर्म ईशान आदि अच्यत देवलोकों तथा तीन सौ अठारह बेयक विमानों का अतिक्रमण करके सर्वार्थ सिद्ध विमान में देवता के रूप में उत्पन्न हुआ है। वहां पर उत्पन्न देवों की तेंतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है (अतः निषध देव की भा वहां पर तेंतीस सागरोपम की स्थिति है)। १२।।
____टीका-निषध कुमार अनेक वर्षों तक श्रावक-धर्म का पालन करता है फिर माता-पिता की आज्ञा से भगवान अरिष्टनेमि से प्रवज्या ग्रहण करता है । अन्तिम समय में समाधि-मरण धारण करता है। भगवान अरिष्टनेमि उसके सर्वार्थ सिद्ध नमक देव-लोक में पैदा होने को भविष्य-वाणी करते हैं, जहां उनकी आयु ३३ सागरोपम है ।।१२।।
.. मूल-से गं भंते ! निसढे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहि ? वरदत्ता ! इहेव जंबूद्दीवे दो महाविदेहे वासे उन्नाए नयरे 'विसुद्धपिइवंसे रायकुले पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ, तएण से उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणय मित्ते जोवणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलबोहिं बज्झिहिइ, बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जि हिइ । से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। से णं तत्थ बहुइं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम दुवालसहि मासद्ध मासखमणेहि विचितेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणिस्सइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसिहिइ, झूसित्ता सठि भताई अणसणाए छेदिहिइ । जस्सट्टाए कोरइ णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए जाव अदंतवणए अच्छत्तए अणीवाहणए फलहसेज्जा कट्ठ