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________________ वग-तृतीय ] ( १८२ ) [कल्पावतंसिका एवं खलु जम्बू - इस प्रकार हे जम्बू, समणेणं जाव संपत्तेण-श्रमण भगवान यावत् मोक्ष को सम्प्राप्त ने, . उबंगाणं तच्चस्स वग्गस्स-उपाङ्ग के तीसरे वर्ग, पुफियाणं-पुष्पिता के, दम अज्झयणा पन्नत्ता-दस अध्ययन प्रतिपादन किये हैं, त जहा-जैसे कि, चदे, सूरे, सुक्के, वहुपुत्तिय, पुन्ने, माणभद्दे य–चन्द्र, सूर्य, शक्र, वहुपुत्रिका, पूर्ण, मानभद्र, दत्त, सिवे, वलेया, अणाढिए, चेव, वोद्धव्वे-दत्त, शिव, बलेपक, अनादृत का वर्णन जानना चाहिए। मूलार्थ-दूसरे वर्ग का अर्थ सुनकर आर्य जम्बू अपने गुरु आर्य सुधर्मा स्वामी से तीसरे वर्ग के बारे में प्रश्न करते हैं- हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर यावत् मोक्ष को संप्राप्त ने द्वितीय वर्ग कल्पावतंसिका का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो तीसरे उपाङ्ग पुष्पिका का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? ___ (आर्य सुधर्मा उत्तर देते हैं) हे जम्बू ! श्रमण भगवान यावत् मोक्ष सम्प्राप्त ने उपाङ्गों में तृतीय वर्ग पुष्पिका के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं जो इस प्रकार जानने चाहिये-१. चन्द्र, २. सूर्य, ३. शुक्र, ४. वहुपुत्रिका, ५. पूर्ण, ६. मानभद्र, ७. दत्त, ८. शिव ९. वलेपक, १०. अनादृत । . टीका- इस सूत्र में कल्पावतंसिका और पुष्पिका का आपसी सम्बन्ध स्थापित किया गया है। तीसरे वर्ग पुष्पिका के भी दस अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन का निक्षेप शुरू व अन्त में स्वयं जोड़ लेना चाहिए। इस सम्बन्ध में वृत्तिकार का कथन है-अथ तृतीय वर्गोऽपि दशाध्ययनात्मक 'निक्खेवओत्ति निगमन वाक्यं यथा एवं खलु जम्बू समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं, इत्यादि जाव सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं, संपाविउकामेणं तइयस्य वग्गस्स (पढम अज्झ) यणस्स पुषिफयाभिहाणस्स अयमठे पण्णत्ते, एवमुत्तरेष्वप्यध्ययनेषु सूरशुक्र-बहुपुत्रिादिषु निगमनं वाच्य तत्तदभिलापेन । इसी प्रकारं प्रत्येक अध्ययन के साथ सम्बन्ध जोड़ लेना चाहिये। सभी वर्गों के नाम ऊपर लिखे जा चुके हैं। उत्थानिका-अब सूत्रकार प्रथम अध्ययन का विषय कहते हैं मूल-जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं पुफियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स पुफियाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अठे पन्नत्ते?। एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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