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________________ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध पदार्थ :- से भिक्खू वा - वह साधु अथवा साध्वी । गाहावइकुलं गृहपति के कुल में। पविसिउकामे प्रवेश करने की इच्छा करता हुआ । सव्वं भंडगमायाए - अपने सर्व धर्मोपकरणों को लेकर । गाहावइकुलं - गृहपति के कुल में। पिंडवायपडियाए - पिंडपात की प्रतिज्ञा से । पविसिज्ज वा- प्रवेश करे अथवा । निक्खमिज्ज वा निकले। ४२ सेभिक्खू वा २ - वह साधु अथवा साध्वी । बहिया - बाहर। विहारभूमिं वा - मलोत्सर्ग - भूमि में । वियारभूमिं वा स्वाध्याय भूमि में। निक्खममाणे वा-निकलता हुआ अथवा । पविसमाणे वा- प्रवेश करता हुआ। सव्वं सब।' । भंडगमायाए - धर्मोपकरण को साथ लेकर । बहिया - बाहिर । विहारभूमिं वा - विहार- मलोत्सर्ग करने की भूमि में । वियारभूमिं वा स्वाध्याय भूमि में । निक्खमिज्ज वा निकले अथवा । पविसिज वाप्रवेश करे। भिक्खू वा वह साधु या साध्वी । गामाणुगामं- ग्रामानुग्राम- एक ग्राम से दूसरे ग्राम में। दूइज्ज़माणेजाता हुआ । सव्वं - सब । भण्डगमायाए-धर्मोपकरणों को साथ लेकर । गामाणुगामं - ग्रामानुग्राम- एक ग्राम से दूसरे ग्राम में । दूइज्जिज्जा - गमन करे जावे । मूलार्थ - जो साधु वा साध्वी गृहपति कुल में प्रवेश करने की इच्छा रखते हैं वे सब धर्मोपकरण साथ लेकर पिंडपात प्रतिज्ञा से गृहपति कुल में प्रवेश करे या निकले। जो साधु वा साध्वी बाहर मलोत्सर्ग भूमि में, या स्वाध्याय भूमि में जाना चाहते हैं वे भी अपने सब भंडोपकरण को साथ लेकर बाहर विहार भूमि में या स्वाध्याय भूमि में प्रवेश करे । ग्रामानुग्राम - एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विचरते समय साधु वा साध्वी अपने सब धर्मोपकरणों को साथ लेकर एक ग्राम से दूसरे ग्राम को विहार करे । हिन्दी विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि जिनकल्पी या प्रतिमाधारी साधु को आहार के लिए या शौच एवं स्वाध्याय आदि के लिए अपने ठहरे हुए स्थान से बाहर जाते समय अपने सभी उपकरण साथ ले जाने चाहिएं। जब कि सूत्र में जिनकल्पी या स्थविरकल्पी का कोई उल्लेख नहीं है। परन्तु, उपकरण ले जाने के कारणों से यह ज्ञात होता है कि यह प्रसंग जिनकल्पी आदि के लिए ही हो सकता है। जिनकल्पी एवं विशिष्ट प्रतिमाधारी मुनि गच्छ से अलग अकेला रहता है। अतः उसके बाहर जाने के बाद यदि वर्षा हो जाए तो उसके उपकरण भीग सकते हैं या कभी कोई व्यक्ति उन्हें उठाकर ले जा सकता है। स्थविरकल्पी साधु कम से कम दो साधु रहते हैं, अतः एक-दूसरे को सावधान करके अपने स्थान से बाहर जा सकता है, अतः उसके लिए ऐसा प्रसंग आ नहीं सकता । दूसरे में जिनकल्पी मुनि के पास अधिक उपकरण नहीं होते । सामान्य रूप से रजोहरण और मुख- वस्त्रिका ही होती है और यदि वह लज्जा पर विजय पाने में समर्थ नहीं है तो एक छोटा-सा चोलपट्टक ( धोती के स्थान में लपेटने का वस्त्र ) रख सकता है, जिसका उपयोग गांव या शहर में आहार आदि को जाते समय करता है और ये उपकरण तो सदा साथ रहते ही हैं। परन्तु, इसके अतिरिक्त कुछ निकल्पी मुनि शीत सहन करने में असमर्थ हों तो वे एक ऊन का और अधिक आवश्यकता पड़ने
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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