SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चदश अध्ययन ४२५ खत्तिय क्षत्रिय की भार्यां । वासिट्ठगुत्ताए - वासिष्ठ गोत्र वाली । तिसलाए खत्तियाणीए-त्रिशला क्षत्रिय । असुभाणं पुग्गलाणं-अशुभ पुद्गलों को । अवहारं करित्ता - दूर करके। सुभाणं पुग्गलाणं - शुभ पुद्गलों का। पक्खेवं करित्ता-प्रक्षेपण करके उसकी । कुच्छिंसि कुक्षी गर्भाशय में । गब्धं साहरइ - उस गर्भ को छोड़ता-प्रतिष्ठित करता है। य-और जे वि-जो फिर से उस । तिसलाए- त्रिशला । खत्तियाणीए - क्षत्रियाणी कुच्छिसि कुक्षि में ब्धे - गर्भ था । य-और तंपि - फिर उसको । दाहिणमाहणकुण्डपुरसंनिवेसंसिदक्षिण ब्राह्मण कुण्ड पुर संनिवेश में ले जाकर । कोडालगोत्तस्स - कोडाल गोत्रीय । उसभदत्तस्स - ऋषभ दत्त। माहणस्स-ब्राह्मण की भार्या । जालंधरायणगुत्ताए - जालन्धर गोत्र वाली । देवानन्दामाहणीए - देवानन्दा ब्राह्मणी की। कुच्छिसि कुक्षि में गब्धं साहारइ उस गर्भ को छोड़ता - प्रतिष्ठित करता है। मूलार्थ – देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में आने के बाद श्रमण भगवान महावीर के हित और अनुकंपा करने वाले देव ने, यह जीत आचार है, ऐसा कहकर वर्षाकाल के तीसरे मास, पांचवें पक्ष अर्थात्- आश्विन कृष्णा त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रम योग होने पर ८२ रात्रिदिन के व्यतीत होने और ८३ वें दिन की रात को दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर निवेश से, उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर सन्निवेश में ज्ञातवंशीय क्षत्रियों में प्रसिद्ध काश्यपगोत्री सिद्धार्थ राजा की वासिष्ठ गोत्र वाली पत्नी त्रिशला महाराणी के अशुभपुद्गलों को दूर करके उनके स्थान में शुभ पुद्गलों का प्रक्षेपण करके उसकी कुक्षि में गर्भ को रखा, और जो त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भ था उसको दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश में जाकर कोडालगोत्रीय ऋषभ दत्त ब्राह्मण की जालन्धर गोत्र वाली देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षी में स्थापित किया । हिन्दी विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भगवान महावीर के गर्भ को स्थानान्तर में रखने का वर्णन किया गया है। ८२ दिन तक भगवान महावीर देवानन्दा के गर्भ में रहे थे। उसके बाद ब्राह्मण कुल को तीर्थंकरों के जन्म योग्य न जानकर इन्द्र की आज्ञा से भगवान महावीर के एक हितचिन्तक देव ने उन्हें देवानन्दा के गर्भ से निकाल कर त्रिशला के गर्भ में रख दिया। यह घटना आश्चर्यजनक अवश्य है, परन्तु असम्भव नहीं है। आज भी हम देखते हैं कि वैज्ञानिक आप्रेशन के द्वारा गर्भ का परिवर्तन करते हैं और इस क्रिया में गर्भ का नाश नहीं होता है। एक गर्भ स्थान से स्थानान्तरित किए जाने पर भी उसका विकास रुकता नहीं है। और भगवान महावीर के गर्भ का परिवर्तन करने का वर्णन आगमों में अनेक जगह मिलता है' । भगवती सूत्र में देवानन्दा ब्राह्मणी के सम्बन्ध में गौतम के द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह मेरी माता है। इसके अतिरिक्त कल्प सूत्र में गर्भ संहारण के संबन्ध में विस्तार से वर्णन किया गया है। और कल्प सूत्र में वर्णित वीर वाचना (महावीर के चरित्र) का आधार आचारांग का प्रस्तुत अध्ययन ही है। कल्पसूत्र के कई पाठ आचाराङ्ग के पाठ से अक्षरश: मिलते हैं । और विषय का साम्य तो प्राय: सर्वत्र मिलता ही है। इस से ऐसा प्रतीत होता है कि आचारांग के प्रस्तुत अध्ययन का कल्प सूत्र में कुछ विस्तार से वर्णन किया १ स्थानांग सूत्र, स्थान ५: उ० १, स्था० १०, समवायांग सूत्र, ८२-८३, दशाश्रुतस्कंध सूत्र, दशा ८ । २ तएणं सा देवानन्दा माहणी आगयपण्हया पप्फुयलोयणा संवरिय वलिय वाहा, कंचुय
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy