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षष्ठ अध्ययन-पात्रैषणा
प्रथम उद्देशक
यह हम देख चुके हैं कि पहले अध्ययन में आहार ग्रहण करने की विधि का, दूसरे अध्ययन में आहार करने एवं ठहरने के स्थान का, तीसरे अध्ययन में गमनागमन में विवेक रखने के लिए ईर्यासमिति का, चौथे में आहार आदि के लिए गमन करते एवं विहार करते समय भाषा में विवेक रखने के लिए भाषा समिति का और पांचवें अध्ययन में इस संयम साधना में प्रवर्तमान साधक को कैसा वस्त्र ग्रहण करना चाहिए इसका उल्लेख किया गया है। अब प्रस्तुत अध्ययन में आहार ग्रहण करने के लिए कैसा पात्र होना चाहिए इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा अभिकंखिजा पायं एसित्तए, से जं पुण पायं जाणिजा, तंजहा-अलाउयपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा, तहप्पगारं पायं जे निग्गंथे तरुणे जाव थिरसंघयणे से एगं पायं धारिजा, नो बिइयं॥से भिः परं अद्धजोयणमेराए पायपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए॥से भि० से जं • अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुहिस्स पाणाई ४ जहा पिंडेसणाए चत्तारि आलावगा, पंचमे बहवे समण पगणिय २ तहेव॥ से भिक्खू वा. अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमाहणे वत्थेसणाऽऽलावओ॥से भिक्खू वा० से जाइं पुण पायाइं जाणिज्जा विरूवरूवाइं महद्धणमुल्लाइं, तंजहाअयपायाणि वा तउपाया० तंबपाया० सीसगपाया० हिरण्णपा० सुवण्णपा० रीरिअपाया० हारपुडपा० मणिकायकंसपाया० संखसिंगपा० दंतपा० चेलपा० सेलपा० चम्मपा० अन्नयराई वा तह. विरूवरूवाइं महद्धणमुल्लाइं पायाई अफासुयाइं नो पडिगाहिजा॥से भि से जाइंपुण पाया विरूव महद्धणबंधणाई तं अयबंधणाणि वा जाव चम्मबंधणाणिवा ,अन्नयराइंतहप्प महद्धणबंधणाई अफा० नो प०॥इच्चेयाइं आयतणाई उवाइक्कम्म अह भिक्खू जाणिज्जा चउहिं पडिमाहिं पायं एसित्तए, तत्थ खलुइमा पढमा पडिमा-से भिक्खू उद्दिसियर पायं जाइज्जा, तंजहा-अलाउयपायं वा ३ तह पायं सयं वा णं जाइज्जा जाव