________________
३०१
चतुर्थ अध्ययन, उद्देशक २ पदार्थ-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा-वह साधु अथवा साध्वी। विरूवरूवाओ-नाना प्रकार के। गाओ-गौ आदि पशुओं को। पेहाए-देखकर। एवं-इस प्रकार । नो वइजा-न कहे। तंजहा-जैसे कि । गाओ दज्झाओत्ति वा-ये गौएं दोहने के योग्य हैं अथवा इनके दोहने का समय हो रहा है। दम्मेति वा-या यह बैल दमन करने के योग्य है। गोरहत्ति वा-या यह तीन वर्षका युवक बैल है।वाहिमत्ति वा-यह बैल हल वाहन करने योग्य है। रहजोगत्ति वा-यह बैल रथ में जोतने योग्य है। एयप्पगारं-इस प्रकार की। सावजं-सावद्य। जाव-यावत् भूतोपघातिनी। भासं-भाषा को। नो भासेजा-न बोले।से-वह। भिक्खू वा भिक्खुणी वा-साधु या साध्वी। विरूवरूवाओ-नाना प्रकार के। गाओ-गौ आदि पशुओं को।पेहाए-देखकर। एवं-वइज्जा-इस प्रकार कहे। तंजहा-जैसे कि । जुवंगवित्ति वा-यह वृषभ बड़ा युवा है अथवा।धेणुत्ति वा-यह गाय जवान है या।रसवइत्ति वा-बहुत दूध देने वाली है। हस्सेइ वा-या यह छोटा बैल है। महल्लेइ वा-यह बड़ा बैल है और।महव्वए इवायह बैल बड़ी आयु का है। संवाहणित्ति वा-यह भार का उद्वहन कर रहा है। एयप्पगारं-इस प्रकार की। असावजं-असावद्य-निष्पाप। भासं-भाषा को। जाव-यावत्। अभिकंख-मन में विचार कर। भासिज्जाबोले।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा-वह साधु या साध्वी। तहेव-उसी प्रकार।गंतुमुजाणाइं-उद्यानादि में जाकर तथा।पव्वयाइं-पर्वतों और।वणाणि-वनों में जाकर। महल्ले-अत्यन्त मोटे।रुक्खा -वृक्षों को। पेहाएदेखकर। एवं-इस प्रकार। नो. वइज्जा-नहीं बोले। तंज़हा-जैसे कि-। पासायजोग्गाति वा-यह वृक्ष प्रासाद (मकान बनाने ) के योग्य है। तोरणजोग्गाइ वा-अथवा यह तोरण बनाने के योग्य ।गिहजोग्गा इवा-अथवा यह घर के योग्य है। फलिहजो-अथवा यह फलक बनाने के योग्य है।अग्गलजो०- यह अर्गला के योग्य है और। नावाजो-यह नाव के योग्य है और यह वृक्ष । उदग दोणजो०-उदक द्रोणी के योग्य है इसी प्रकार। पीढ-पीढ़ के योग्य हैं। चंगबेर-काठ का बर्तन विशेष उसके योग्य है। नंगल-हल के योग्य है। कुलिय-कुलड़ी के योग्य । जंत-यन्त्र के योग्य है। लट्ठी-लाठी के योग्य है अथवा कोल्हू की लट्ठी के योग्य है। नाभि-चक्र की नाभि के योग्य है। गंडी-सुनार के किसी काष्ठोपकरण के योग्य है और। आसणजो०-आसन के योग्य है तथा। सयणशयन-शय्या पलंग। जाण-शकटादि के और। उवस्सयजोगाईवा-उपाश्रय के योग्य है। एयप्पगारं-इस प्रकार की सावध भाषा यावत् भूतोपघातिनी भाषा को। नो भासिज्जा-नहीं बोले। से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी। तहेव-उसी प्रकार। गंतु-उद्यानादि में जाकर वहां पर स्थित महान् वृक्षों को देखकर। एवं वइज्जा-इस प्रकार कहे। तंजहा-जैसे कि-। जाइमंता इ वा-ये वृक्ष बड़े उत्तम जाति के हैं, अर्थात् किसी अच्छी नसल के हैं। दीहवट्टा इ वा-अथवा ये वृक्ष दीर्घ और वृत्त अर्थात् गोलाकार हैं। महालयाइ वा-बड़े विस्तार वाले हैं। पयायसाला इ वा-इनकी विस्तृत अनेक शाखाएं हैं। विडिमसाला इ वा-इस वृक्ष की मध्य में चार शाखाएं हैं जिनमें एक ऊंची भी चली गई है अथवा ये वृक्ष। पासाइया इ वा-प्रासादीय प्रसन्नता देने वाले हैं। जाव-यावत्। पडिरूवाति वा-प्रति रूप-सुन्दर हैं। एयप्पगारं-इस प्रकार की।असावज्ज-असावद्य-निष्पाप। जाव-यावत्। भासं-भाषा को। भासिज्जा-बोले।
. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा -वह साधु अथवा साध्वी। बहुसंभूया-बहुत परिमाण में उत्पन्न हुए। वणफला-वन के फलों को-अर्थात् वन में होने वाले वृक्षों के फलों को। पेहाए-देखकर।तहावि-तथापि।तेउनके सम्बन्ध में। एवं-इस प्रकार। नो वइज्जा-न कहे -न बोले। तंजहा-जैसे कि-। पक्का इ वा-ये फल