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तृतीय अध्ययन, उद्देशक ३
२७१ पासह-देखा है जैसे कि।जवसाणि वा-यव, गोधूमादि धान्य को।जाव-यावत्। सेणं वा-राजा की सेना को। विरूवरूवं-नाना प्रकार के। संनिविठे-उतरे हुए राजा के कटक-सेना को। से-उसे। आइक्खह-कहोबताओ। जाव-यावत्। दूइज्जिज्जा-ग्रामानुग्राम विहार करे। से भिक्खू वा-वह साधु अथवा साध्वी। गामा० दूइज्जमाणे-एक ग्राम से दूसरे ग्राम को जाते हुए।अंतरा-मार्ग में। पा०-पथिक लोग।जाव-यावत् आ जाएं और साधु के प्रति कहें कि। आउ० स०-आयुष्मन् श्रमण। केवइए-कितनी दूर। इत्तो-यहां से। गामे वा-ग्राम है। जाव-यावत्। रायहाणी वा-राजधानी है। से-उसे। आइक्खह-कहो। जाव-यावत्। दू-मौनवृत्ति से विहार करे।से भिक्खू वा-वह साधु अथवा साध्वी। गामाणुगाम-एक ग्राम से दूसरे ग्राम के प्रति। दूइज्जमाणे-विहार करते हुए। से-उसके। अंतरा-मार्ग में यदि। पाडिवहिया-पथिक आ जाएं और पूछे कि। आउसंतो समणाआयुष्मन् श्रमण ! केंवइए-कितनी दूर। इत्तो-यहां से। गामस्स वा-ग्राम का अथवा। नगरस्स वा-नगर का। जाव-यावत्। रायहाणीए वा-राजधानी का।मग्गे-मार्ग है। से-उसे।आइक्खह-कहो अर्थात् बताओ? शेष। तहेव-उसी प्रकार। जाव-यावत्। दूइजिजा-मौन वृत्ति से विहार करे।
मूलार्थ-संयमशील साधु या साध्वी को विहार करते हुए यदि मार्ग के मध्य में सामने से कोई पथिक मिलें और वे साधु से कहें कि आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने मार्ग में मनुष्य को, मृग को, महिष को, पशु को, पक्षी को, सर्प को और जलचर को जाते हुए देखा है? यदि देखा हो तो बताओ वे किस ओर गए हैं ? साधु इन प्रश्नों का कोई उत्तर न दे और मौन भाव से रहे, तथा उसके उक्त वचन को स्वीकार न करे, तथा जानता हुआ भी यह न कहे कि मैं जानता हूँ। और ग्रामानुग्राम विचरते हुए साधु को मार्ग में वे पथिक यह पूछे कि आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में जल से उत्पन्न होने वाले कन्दमूल, त्वचा, पत्र, पुष्प, फल, बीज, हरित, एवं जल के स्थान और अप्रज्वलित हुई अग्नि को देखा है तो बताओ कहां देखा है ? इसके उत्तर में भी साधु कुछ न कहे अर्थात् चुप रहे। तथा ईर्यासमिति पूर्वक विहार चर्या में प्रवृत्त रहे और यदि यह पूछे कि इस मार्ग में धान्य और राजाओं की सेना कहां पर है ? तो इस प्रश्न के उत्तर में भी मौन रहे। यदि वे पूछे कि आयुष्मन् श्रमण ! यहां से ग्राम यावत् राजधानी कितनी दूर है ? तथा यहां से ग्राम नगर यावत् राजधानी का मार्ग कितना शेष रहा है ? इनका भी उत्तर न दे तथा जानता हुआ भी मैं जानता हूँ ऐसे न कहे, किन्तु मौन धारण करके ईर्यासमिति पूर्वक अपना रास्ता तय करे।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि यदि विहार करते समय कोई पथिक पूछे कि हे मुनि ! आपने इधर से किसी मृग, गाय आदि पशु-पक्षी या मनुष्य आदि को जाते हुए देखा है ? इसी तरह जलचर एवं वनस्पतिकाय या अग्नि आदि के सम्बन्ध में भी पूछे और कहे कि यदि आपने इन्हें देखा है तो बताइए वे कहां हैं या किस ओर गए हैं ? उसके ऐसा पूछने पर साधु को मौन रहना चाहिए। क्योंकि, यदि साधु उसे उनका सही पता बता देता है तो उसके द्वारा उन प्राणियों की हिंसा होना सम्भव है। अतः पूर्ण अहिंसक साधु को प्राणीमात्र के हित की भावना को ध्यान में रखते हुए उस समय मौन रहना चाहिए।
... 'प्रस्तुत प्रसंग में प्रयुक्त 'जाणं वा नो जाणंति वइज्जा' के अर्थ में दो विचार-धाराएं हमारे