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________________ २४१ तृतीय अध्ययन, उद्देशक १ प्रसंगवश बीच में कोई दुर्घटना हो जाए तो मेरे आहार-पानी आदि का जीवन पर्यन्त के लिए त्याग है। — एक पैर पानी में तथा दूसरा पैर स्थल पर रखने का विधान अप्कायिक जीवों की दया के लिए किया गया है और यहां स्थल का अर्थ पानी के ऊपर का आकाश-प्रदेश है, न कि पृथ्वी। इसका तात्पर्य यह है कि साधु को पानी को मथते हुए-आलोड़ित करते हुए नहीं चलना चाहिए, परन्तु विवेक पूर्वक धीरे से एक पैर पानी में और दूसरा पैर पानी के ऊपर आकाश में रखना चाहिए, इसी विधि से नौका तक पहुंच कर विवेक के साथ नौका पर सवार होना चाहिए। नौका से सम्बन्धित विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं____मूलम्- से भिक्खू वा. नावं दुरूहमाणे नो नावाओ पुरओ दुरूहिज्जा, नो नावाओ मग्गओ दुरूहिज्जा, नो नावाओ मज्झओ दुरूहिज्जा, नो बाहाओ पगिज्झिय २ अंगुलियाए उद्दिसिय २ ओणमिय २ उन्नमिय २ निज्झाइज्जा।से णं परो नावागओ नावागयं वइज्जा-आउसंतो ! समणा एवं ता तुमं नावं उक्कसाहिज्जा वा वुक्कसाहि बा खिवाहि वा रज्जुयाए वा गहाय आकासाहि, नो से तं परिन्नं परिंजाणिज्जा तुसिणीओ उवेहिजा। से णं परो नावागओ नावाग वइ०-- आउसं० नो संचाएसि तुमं नावं उक्कसित्तए वा ३ रज्जुयाए वा गहाय आकसित्तए वा आहर एयं नावाए रज्जुयं सयं चेव णं वयं नावं उक्कसिस्सामो वा जाव रज्जुए वा गहाय आकसिस्सामो, नो से तं प० तसि।से णं प० आउसं० एयं ता तुमं नावं आलित्तेण वा पीढएण वा वंसेण वा बलएण वा अवलुएण वा वाहेहि, नो से तं प० तुसि।सेणं परो एयंता तुमं नावाए उदयं हत्थेण वा पाएण वा मत्तेण वा पडिग्गहेण वा नावाउस्सिंचणेण वा उस्सिचाहि, नो से तं० से णं परो० समणा ! एयं तुमं नावाए उत्तिंगं हत्थेण वा पाएण वा बाहुणा वा उरुणा वा उदरेण वा सीसेण वा काएण वा उस्सिंचणेण वा चेलेण वा मट्टियाए वा कुसपत्तएण वा कुविंदएण वा पिहेहि, नो से तं०॥से भिक्खू वा २ नावाए उत्तिंगेण उदयं आसवमाणं पेहाए उवरुवरिं नावं कजलावेमाणिं पेहाए नो परं उवसंकमित्तु एवं बूया-आउसंतो! गाहावइ एयं ते नावाए उदयं उत्तिंगेण आसवइ उवरुवरिं नावा वा कज्जलावेइ, एयप्पगारं मणं वा वायं वा नो पुरओ कटु विहरिजा अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे एगंतगएण अप्पाणं विउसेज्जा समाहीए, तओ सं. नावा संतारिमे उदए आहारियं रीइज्जा, एयं खलु सया
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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