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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध का होना ही उचित प्रतीत होता है। और आम्र के धोए हुए पानी में गुठली के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है। इससे स्पष्ट होता है कि अस्थि शब्द का गुठली के अर्थ में प्रयोग होता रहा है।
___प्रज्ञापना सूत्र में वनस्पति के प्रसंग में 'मसकडाहं' शब्द का प्रयोग किया गया है । वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'समांसं सगिरं' अर्थात् फलों का गुद्दा किया है । और वृक्षों का वर्णन करते हुए लिखा है कि कुछ वृक्ष एक अस्थि वाले फलों के होते हैं- जैसे-आम्र, जामुन आदि के वृक्ष । अर्थात् आम्र, जामुन आदि फलों में एक गुठली होती है। यह तो स्पष्ट है कि फलों में गुठली ही होती है, न कि हड्डी। इससे स्पष्ट . है कि आगम में अस्थि शब्द गुठली के अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है।
जैनागमों के अतिरिक्त आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी अस्थि शब्द का गुठली के अर्थ में अनेक स्थलों पर प्रयोग हुआ है
पथ्याया मज्जनिस्वादुः, स्नायावम्लो व्यवस्थितः।
वृन्ते तिक्तस्त्वचि कटुरस्थिस्थस्तुवरो रसः॥
अर्थात्- हरड़ की मज्जा स्वादु है, इसकी नाड़ियों में खट्टापन है, बृन्त में तिक्त रस है, त्वचा में कटुपन और अस्थि-गुठली में कसैला रस है।
मज्जा पनसजा वृष्या, वातपित्तकफापहाः। अर्थात् कटहर की मज्जा वृष्य, वात, पित्त और कफ को नाश करती है।
____. अभिनव निघण्टु पृ० १६० मुण्डी भिक्षुरपि प्रोक्ता, श्रावणी च तपोधना। श्रावणाह्वा मुण्डतिका, तथा श्रवणशीर्षका ॥ महाश्रावणिकाऽन्यातु, सा स्मृता भूकदम्बिका। कदम्बपुष्पिका च स्यादव्यथाति तपस्विनी॥
अर्थात्-मुण्डी, भिक्षु, श्रावणी, तपोधना श्रावणाह्वा, मुण्डतिका, श्रवणशीर्षका, भूतघ्नी, पलकषा कदम्बपुष्पा अरुणा, मुण्डीरिका, कुम्भला, तपस्विनी, प्रव्रजिता और परिव्रजिका ये मुण्डी के नाम हैं।
. - भावप्रकाश पृ० २३१,२३२ भाव प्रकाश में और भी इसी प्रकार की वनस्पतियों के नामों का उल्लेख है, जैसे किहयपुच्छिका
माषपर्णी वनस्पति
२९६ व्याघ्रप्रच्छ
एरण्ड
२०७ सिंहतुण्ड
डंडा थोहर
२०९ सिंहास्य वृष
वांसा जीव
वकापण-डेक
१ प्रज्ञापना सूत्र, प्रथम पद। २ प्रज्ञापना सूत्र, प्रथम पद। ३ भावप्रकाश निघं हरीतक्यादि व पृ०५६।