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________________ ११२ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध साधु को इस तरह का सदोष आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। २-असणं वा- सूत्रकार ने जगह-जगह चार प्रकार के आहार का उल्लेख किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मद्य-मांस आदि का आहार साधु के लिए सर्वथा अग्राह्य है। यदि इस प्रकार के पदार्थ ग्राह्य होते तो जगह-जगह चार प्रकार के आहार का ही ग्रहण न करके, अन्य प्रकार के आहार को भी साथ जोड़ देते। ३-चेइस्सामो- इससे स्पष्ट होता है कि साधु को आहार देने के बाद फिर से ६ काय का आरम्भ करके आहार तैयार करने का विचार करके दिया जाने वाला आहार भी सदोष माना गया है। अतः आहार शुद्धि के लिए साधु को बड़ी सावधानी से गवेषणा करनी चाहिए। इसी विषय में कुछ और जानकारी कराते हुए सूत्रकार कहते हैं- . .. मूलम्- से भिक्खू वा वसमाणे वा गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे से जं. गामं वा जाव रायहाणिं वा इमंसि खलुगामंसि वा रायहाणिंसि वा संतेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंधुया वा पच्छासंथुया वा परिवसंति, तंजहा-गाहावई वा जाव कम्म० तहप्पगाराइं कुलाइं नो पुवामेव भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमिज वा । पविसिज वा २, केवली बूया-आयाणमेयं, पुरापेहाए तस्स परो अट्ठाए असणं वा ४ उवकरिज वा उवक्खडिज वा, अह भिक्खूणं पुव्वोवइट्ठा ४ जं. नो तहप्पगाराइं कुलाई पुव्वामेव भत्ताए वा पाणाए वा पविसिज वा निक्खमिज वा २, से तमायाय एगंतमवक्कमिज्जा २, अणावायमसंलोए चिट्ठिज्जा, से तत्थ कालेणं अणुपविसिज्जा २ तत्थियरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं एसित्ता आहारं आहारिजा, सिया से परो कालेण अणुपविट्ठस्स आहाकम्मियं असणं वा उवकरिज वा उवक्खडिज वा तं चेगइओ तुसिणीओ उवेहेजा, आहडमेव पच्चाइक्खिस्सामि, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिजा, से पुव्वामेव आलोइज्जा-आउसोत्ति वा भइणित्ति वा नो खलु मे कप्पइ आहाकम्मियं असणं वा ४ भुत्तए वा पायए वा, मा उवकरेहि वा उवक्खडेहि, से सेवं वयंतस्स परो आहाकम्मियं असणं वा. उवक्खडावित्ता आहटु दलइज्जा तहप्पगारं असणं वा• अफासुयं ॥५०॥ __ छाया- स भिक्षुर्वा वसन् वा ग्रामानुग्रामं वा दूयमानः स यत् प्रामं वा यावत् राजधानी वा अस्मिन् खलु ग्रामे वा राजधान्यां वा सन्ति एककस्य (कस्यचित् ) भिक्षोः पूर्वं
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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