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________________ १०२ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध पदार्थ। असत्थप-जिसे शस्त्र ने परिणत नहीं किया है उसे।अफासुयं-अप्रासुक जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे।से-वह।भिक्खू-साधु अथवा साध्वी गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर।से जं पुण-यदि फिर।पलंबजायंफलों की जाति को। जाणिजा-जाने। तंजहा-जैसे कि।अंबपलंबं वा-आम्र फल को। अंबाडगपलंबं वाअम्बाडग फल को। तालप०-ताड़ के फल को। झिझिरप०-लताओं के फल को। सुरहि-सुरभि-वनस्पति विशेष के फल को।सल्लरप०-शल्य-वनस्पति विशेष के फल को।अन्नयरं-तथा अन्य। तहप्पगारं-इसी प्रकार के। पलंबजायं-प्रलम्ब-फल विशेष को। आमगं-कच्चा। असत्थप०-जो कि शस्त्र परिणत नहीं हुआ, ऐसा मिलने पर अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे। से-वह। भिक्खू वा-साधु या साध्वी गृहस्थ के घर जाने पर। से जं पुण-वह फिर। पवालजायं-प्रवाल जात को। जाणिज्जा-जाने। तंजहा-जैसे कि। आसोट्ठपवालं वापीपल वृक्ष के प्रवाल-पत्र। निग्गोहप०-न्यग्रोध-वट वृक्ष के पत्ते। पिलुंखुप०-पिप्परी वृक्ष के पत्ते। नियू (पू) रप-नन्दी वृक्ष के पत्ते। सल्लइप-शल्य वृक्ष के पत्ते तथा। अन्नयर-अन्य। तहप्पगारं-इसी प्रकार के। पवालजायं-पत्ते। आमगं-कच्चे हैं। असत्थप०-जोशस्त्र परिणत नहीं हैं तो उन्हें। अफासयं-अप्रासक जानकर ग्रहण न करे।से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी गृहपति कुल में जाने पर।से जं पुण-वह फिर। सरडुयजायंसरडु जात-अबद्धास्थि फल जिसमें अभी तक गुठली नहीं बनी है ऐसे सुकोमल फलों को। जाणिज्जा-जाने। तंजहा-जैसे कि। अंबसरडुयं वा-आम का सुकोमल फल। कविट्ठसर०-कपित्थ का सुकोमल फल। दाडिमसर-अनार का सुकोमल फल। बिल्लसर-बिल्व का सुकोमल फल तथा।अन्नयरं-अन्य। तहप्पगारंइसी प्रकार। सरडुयजायं-सुकोमल फलों को जो।आमं-कच्चे हैं। असत्थप०-जिसको शस्त्र परिणत नहीं हुआ है, मिलने पर भी अप्रासुक जानकर उसे ग्रहण न करे। से भिक्खू वा-वह.साधु या साध्वी गृहपति कुल में प्रविष्ट होने पर।से जं पु०-फिर इस प्रकार जाने। तंजहा-जैसे कि। उंबरमंथु वा-उदुम्बर फल का चूर्ण। निग्गोहमं०वट वृक्ष के फल का चूर्ण।पिलुंखुमं०-पिप्परी फल का चूर्ण। आसोत्थमं०-अश्वत्थ पीपल का चूर्ण।अन्नयरंतथा अन्य। तहप्पगारं-इसी प्रकार का। मंथुजायं-मन्थुजात-चूर्ण। आमयं-कच्चा है। दुरुक्कं-थोड़ा पीसा हुआ है।साणुबीयं-जिसका योनि बीज विध्वस्त नहीं हुआ है तो।अफासुयं-उसे अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे। मूलार्थ-गृहपति के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी जलज कन्द, और सर्षपनालिका कन्द तथा इसी प्रकार का अन्य कोई कच्चा कन्द जिसको शस्त्रपरिणत नहीं हुआ ऐसे कन्द आदि को अप्रासुक जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। . गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होने पर साधु वा साध्वी पिप्पली-पिप्पली का चूर्ण, मिरच-मिरच का चूर्ण, अदरक-अदरक का चूर्ण, तथा इसी प्रकार का अन्य कोई पदार्थ या चूर्ण, कच्चा और अशस्त्र परिणत-जिसे शस्त्र परिणत नहीं हुआ मिलने पर अप्रासुक जान कर ग्रहण न करे। गृहपति के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी प्रलम्बजात फलजात-फल समुदाय को जाने, यथा-आम्रप्रलम्ब आमफल का गुच्छा-फलसामान्य,अम्बाडग फल, ताडफल, लताफल, सुरभि फल, और शल्यकी का फल तथा इसी प्रकार का अन्य कोई प्रलम्बजात कच्चा और जिसे शस्त्र परिणत नहीं हुआ मिलने पर अप्रासुक जान कर ग्रहण न करे। गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी प्रवालजात-पत्र समुदाय को जाने यथा अश्वत्थ प्रवाल, न्यग्रोध-वट प्रवाल, प्लक्ष प्रवाल, निपूर प्रवाल, नन्दी वृक्ष प्रवाल और शल्यकी प्रवाल तथा इस प्रकार का कोई अन्य प्रवालजात कच्चा अशस्त्रपरिणत जिसे शस्त्रपरिणत नहीं हुआ,
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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