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________________ प्रस्तावना. श्री जगत्मां श्रात्महितसाधक कोइ मार्ग होय तो ते परम पवित्र वीतराग सर्वज्ञे उपदेशेल धर्म बे. ए मार्ग स्यादवाद बे. विरोधी बे, एनी खात्री ए मार्गने अनुसरनार पूर्वे थइ गएला एवा महान आचार्योंनां वचनो बे. ए पूर्व पुरुषोए जेजे अपूर्वग्रंथोनी रचना करीबे, ते ते पवित्र दर्शनना महिमानी अने तेमनां ज्ञाननी साक्षी पुरे बे. वा सत्पुरुषोए रचेल अपूर्व, अमृतमय ज्ञान पुस्तकोने देखी, वांची, विचारी क्यो आत्मानंदी जीव उल्लास नहिं पामे ? वो आनंद आत्मार्थी प्राप्त करे, तत्त्व पामे, पूर्व महापुरुषोना पगले चाली तेना जेवा थाय, अने ए महापुरुषोनी कृति अविछिन्न जलवा रहे, ए यदि देतुथी, स्वपर हितबुद्धिथी, निर्जरानां कारणथी श्रमे एवा महापुरुषोए रचेल प्रकरण ग्रंथ प्रसिद्ध करवानो प्रयास कर्यो बे. एना अंगे श्रमारी तरफथी श्री प्रकरण रत्ना - करादिक ग्रंथो बहार पडी चूक्या बे. ए बधानी खपती, अने एथी जागृत एली जैन जाइयोनी ज्ञानरुचि ए ग्रंथो तथा तेना कर्त्तापुरूषोनुं महात्म्य प्रगट करे बे; तथा एवा बहु बहु ग्रंथो प्रसिद्धिमां याववानी घ्यावश्यकता सूचवे बे. या प्रकरण रत्नाकरनो प्रथम जाग एकवार उपाइ गयो दतो; ए खपी जवाथी फरी आवृत्ति सुधारा - वधारा साथे उपाइ बे, ए अगाउ निवेदन कर्युडे. या ग्रंथना चार जाग करवामां श्राव्या बे; तेमां या चोथो जाग बे. प्रकरण रत्नाकरना प्रथम जागनी प्रथम श्रावृत्तिमां श्री उपमितिजव प्रपंच " ग्रंथ हतो; पण ते श्री जावनगरनी जैनधर्मप्रसारक सजाए बुटक उपावेल होवाथी या श्रावृत्तिमां एना बदले प्रकरण रत्नाकरना बीजा जाग मांहेलो " श्री समयसार " नो ग्रंथ दाखल करेल . ፡፡ या जागमां एकलो " समयसार " ज दाखल करेल बे. एना कर्त्ता कवि बनारसी दास बे. ए पुरुषनो सविगत इतिहास आपणने मल्यो नथी; तथापि या ग्रंथमांथी एना विषेपणने घणुं जाणवानुं मली यावे बे. एनी पंदिताइ, विद्वता ने आत्मनिष्ठानी श्र ग्रंथ आपणने प्रतीति करावे बे. या ग्रंथ हिंदी जाषानां पदमांबे; साथे गुजराती टीका बे. प्रधान पणे एमां द्रव्यानुयोगनो अधिकार बे. नाम प्रमाणेज ए ग्रंथ " समय " ना - " सिद्धात "ना, - " श्रागमना साररूप, तत्त्वरूप बे. स्याद्वादशैलिना जाण पुरुषोए निश्चय ने व्यवहार ए बेरूपे धर्मनुं निरूपण कर्यु बे; तेमां या ग्रंथ प्रधानपणे निश्चयधर्म प्ररूपतो हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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