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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. . हवे सम्यक्त्वना पचीस दोष कहेजेः-श्रथ पंचवीस दोष यथाः॥ दोहराः ॥-अष्ट महामद अष्ट मल, षट् थायतन विशेष; तीन मूढता संजुगत, दोष पचीसी एषः ॥ ५॥
अर्थः-श्रष्ट महामद बे, अने श्राप मल बे, आयतन विशेष बे, अने त्रण मू ढता बे; ए सर्व एका करीए तो पचीस दोष थाय. ॥ ५ ॥
हवे श्राप जातना मद कहेजेः-श्रथ अष्ट मद यथाः॥ दोहराः॥-जाति लान कुल रूप तप, बल विद्या अधिकार; इन्हको गरव जु कीजिये, यह मद अष्ट प्रकार. ॥६॥
अर्थः-जातिमद, लानमद, कुलमद, रूपमद, तपमद,बलमद, विद्यामद, तथा अधि कार के ऐश्वर्यमद ए श्राप वस्तुनो जे गर्व करवो तेज या प्रकारना मद कह्यावे. ॥६॥
हवे श्राप प्रकारना मल कहे बेः-अथ अष्ट मल कथनः-- ॥ चोपाईः॥-श्रासंका अस्थिरता वांबा; ममता दृष्टि दशा पुरगंडा; वत्सल रहित दोष परजाषे; चित्त प्रजावना मांहि न राषे. ॥ ७॥
अर्थः-धर्म उपर अने जिनशासन वचन जपर शंका राखे, धर्ममां स्थिरता नहीं. स्वर्गादिकनी वांबाधरे, कुटुंबादिकविषे ममत्व जाव राखे, ए धर्म मलीन एवी छ गंगा करे, स्वामी वत्सल न करे, पारका दोष प्रकाशे, ज्ञान प्रमुख विविध प्रकारनी प्रजावनामा चित्त न राखे. ए श्राप मल जाणवा ॥७॥ हवे श्रायतन दोष कहे ते स्थान मिथ्यात्वनां कहे:-श्रथ षडायतनयथाः
॥ दोहाः ॥ -कुगुरु कुदेव कुधर्म धर, कुगुरु कुदेव कुधर्म; इनकी करे सराहना, यह षडायतन कर्म. ॥ ७॥
अर्थः-कुगुने माननार, कुदेवने सेवनार, कुधर्मने माननार, कुगुरु प्रशंसा, कुदेव प्र शंसा, कुधर्म प्रशंसा, ए बएनी प्रशंसा करे ते श्रायतन कर्म दोष बे. ॥ ॥
हवे त्रण मूढता दोष कहेजेः-अथ मूढत्रय यथा कथनः॥ दोहराः ॥-देव मूढ गुरु मूढता, धर्म मूढता पोष; आठ श्राउ षट तीनि मिलि, ए पचीस सब दोषः ॥ ए॥
अर्थः-सुदेव समके नही ए पेली देव मूढता,सुगुरुने समजे नही ए बीजी गुरु मूढता, सुधर्मने समफे नही ए त्रीजी धर्म मूढता. ए अविद्यानो पोषक . एरीते आठ मद, श्राप मल, ब आयतन, त्रण मूढता, सर्व मली पचीस दोष थया. ॥ ए॥
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