SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. . हवे सम्यक्त्वना पचीस दोष कहेजेः-श्रथ पंचवीस दोष यथाः॥ दोहराः ॥-अष्ट महामद अष्ट मल, षट् थायतन विशेष; तीन मूढता संजुगत, दोष पचीसी एषः ॥ ५॥ अर्थः-श्रष्ट महामद बे, अने श्राप मल बे, आयतन विशेष बे, अने त्रण मू ढता बे; ए सर्व एका करीए तो पचीस दोष थाय. ॥ ५ ॥ हवे श्राप जातना मद कहेजेः-श्रथ अष्ट मद यथाः॥ दोहराः॥-जाति लान कुल रूप तप, बल विद्या अधिकार; इन्हको गरव जु कीजिये, यह मद अष्ट प्रकार. ॥६॥ अर्थः-जातिमद, लानमद, कुलमद, रूपमद, तपमद,बलमद, विद्यामद, तथा अधि कार के ऐश्वर्यमद ए श्राप वस्तुनो जे गर्व करवो तेज या प्रकारना मद कह्यावे. ॥६॥ हवे श्राप प्रकारना मल कहे बेः-अथ अष्ट मल कथनः-- ॥ चोपाईः॥-श्रासंका अस्थिरता वांबा; ममता दृष्टि दशा पुरगंडा; वत्सल रहित दोष परजाषे; चित्त प्रजावना मांहि न राषे. ॥ ७॥ अर्थः-धर्म उपर अने जिनशासन वचन जपर शंका राखे, धर्ममां स्थिरता नहीं. स्वर्गादिकनी वांबाधरे, कुटुंबादिकविषे ममत्व जाव राखे, ए धर्म मलीन एवी छ गंगा करे, स्वामी वत्सल न करे, पारका दोष प्रकाशे, ज्ञान प्रमुख विविध प्रकारनी प्रजावनामा चित्त न राखे. ए श्राप मल जाणवा ॥७॥ हवे श्रायतन दोष कहे ते स्थान मिथ्यात्वनां कहे:-श्रथ षडायतनयथाः ॥ दोहाः ॥ -कुगुरु कुदेव कुधर्म धर, कुगुरु कुदेव कुधर्म; इनकी करे सराहना, यह षडायतन कर्म. ॥ ७॥ अर्थः-कुगुने माननार, कुदेवने सेवनार, कुधर्मने माननार, कुगुरु प्रशंसा, कुदेव प्र शंसा, कुधर्म प्रशंसा, ए बएनी प्रशंसा करे ते श्रायतन कर्म दोष बे. ॥ ॥ हवे त्रण मूढता दोष कहेजेः-अथ मूढत्रय यथा कथनः॥ दोहराः ॥-देव मूढ गुरु मूढता, धर्म मूढता पोष; आठ श्राउ षट तीनि मिलि, ए पचीस सब दोषः ॥ ए॥ अर्थः-सुदेव समके नही ए पेली देव मूढता,सुगुरुने समजे नही ए बीजी गुरु मूढता, सुधर्मने समफे नही ए त्रीजी धर्म मूढता. ए अविद्यानो पोषक . एरीते आठ मद, श्राप मल, ब आयतन, त्रण मूढता, सर्व मली पचीस दोष थया. ॥ ए॥ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy