SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. अने जत्गथी उदास रहेजे. जे थार्त अने रोड ए बे ध्यानथी विमुख थयाने, तेथी सदैव सुखनी सन्मुख थयाने, एवा समकिती जीव महा सुखमयी जे.॥७॥ फरी पोताना उबासथी समकितीनी स्तुति करे:॥सवैया श्कतीसाः॥-जाके घट प्रगट विवेक गनधरकोसो, हिरदे हरख महा मो हकों हरतु है; साचो सुख मानै निज महीमा अमोल जाने, अपुही मेंथापनो सुनावले धरतुहै; जैसे जल कर्दम कतक फल जिन्न करे, तैसे जीव अजीव विलबन करतु है; श्रातम सगति साधै ज्ञानको उदो श्राराधे, सोई समकिती नवसागर तरतु है ॥७॥ अर्थः- जेवी रीते " जप्पनेवा, विगमेवा, धूवेवा, ” ए त्रण पद सांजलीने गण धरना हृदयमां प्रगट विवेक उत्पन्न थायजे; अने अर्थनेविष कोई संदेह रहै नहीं. तेवी रीतेज समकितीना घटमां विवेक प्रगट थयो, तेणेकरी स्वस्थ थई पोताना हृदयमां श्रानंदने पामी महा मोहने हरण करे. पोतार्नु मिथ्यात्व पूर करीने स म्यक्त्व करे. हवे सम्यक्त्वनी व्यवस्था कहेजेः-जे विषयसुख दे ते तो अनित्य ने माटे फूग , अने सहज समाधि सुख जे जे ते शाश्वता बे तेथी ते सुखनेज साचं मानेने. अने पोतानो झातारूप महीमा अडोल जाणे. तथा ज्ञान दर्शन अने चारित्र जे जे ते पोतानो खन्नाव , तेने पोतामांज धारेबे. पहेलां जीव मिथ्यात्व दशामां जीव अने शरीरने एक करी जाणतो हतो, श्रने हमणा जीव अने अजी वने निन्नभिन्न लक्षणे करी जाणे. जेम पाणी अने चीकल एकगं थरंगयां होय, तेने कतकफल निर्मलीनुं चूर्ण नाखवाथी पाणी तथा कादवने ते रेणु निन्नभिन्न करी नाखेडे, तेम जीव अने अजीवने जुदो जुदो लखेडे. चारित्रमां श्रात्मानी शक्तिने साधे, श्रने मतिज्ञान तथा श्रुतझाननो उदय थवानी श्वा करेजे. मति अज्ञान तथा श्रुतश्रज्ञानने गमावी दिये. ते समकिती जीव नवसमुनो तर नार कहेवायडे; ए रहस्य डे ॥॥ हवे समकीत पाम्याबतां मिथ्यात्वदृष्टिमांज रहे, तेनुं वर्णन करे. सवैया श्कनीसाः॥-धरम न जानत बखानत जरमरूप,गैर गैर गनत लराई पन्छ पातकी, नूख्यो अनिमानमें न पाठं धरे धरनीमें, हिरदेमें करनी बिचारै उतपातकी, फिरेडावाडोलसें करमके कलोलनमें, वैरही अवस्थासों बघूलाकेसे पातकी, जाकी गती ताती कारी कुटिल कुबाती नारी, ऐसो ब्रह्मघाती है मिथ्याती महापातकी॥॥ _ अर्थः-जे वस्तुना स्वनावरूप धर्मने जाणे नही, थने जर्मरूप मिथ्यावाणीने वखाणे; तथा ठेकाणे ठेकाणे, पोतानुं मत स्थापवाने पक्षपातनी लमाई करे अने पोताना अजिमाने चूल्यो थको धरती उपर पग राखे नही, पोतानेज तत्ववेत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy