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[जैन आगम : एक परिचय (१) जिनभद्रगणी श्रमाश्रमण- इन्होंने संस्कृत भाषा में सर्वप्रथम अपने विशेषावश्यकभाष्य पर स्वोपज्ञवृत्ति लिखी। .
(२) आचार्य हरिभद्र- ये संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। इनका समय वि.सं. ७५७ से ८२७ हैं। इनका कुल विद्याधर तथा गच्छ एवं सम्प्रदाय श्वेताम्बर था। याकिनी महत्तरा इनकी धर्ममाता थी। इनके गच्छपति गुरु जिनभट्ट और दीक्षा गुरु जिनदत्त थे। - इनके लिखे १४४४ ग्रन्थ माने जाते हैं किन्तु वर्तमान में ७५ ही मिलते हैं। कुछ प्रमुख ग्रन्थ हैं -(१) नन्दीवृत्ति, (२) अनु यो गद्वार वृत्ति, (३) दशवैकालिक वृत्ति, (४) प्रज्ञापनाप्रदेशव्याख्या, (५)आवश्यकवृत्ति आदि।
(३) कोट्याचार्य- इन्होंने जिनभद्रगणी श्रमाश्रमण के अपूर्ण विशेषावश्यक स्वोपज्ञभाष्य को पूरा किया। इस ग्रन्थ का परिमाण १३७०० श्लोक प्रमाण है। इनका समय विक्रम की आठवीं शताब्दी है।
(४) आचार्य गंधहस्ती- ये आगम के मर्मज्ञ विद्धान और आगम विरूद्ध युक्तियों के निरसन में अति कुशल थे। इनका समय विक्रम की सातवीं और नवीं शताब्दी के मध्य था। इन्होंने आचारांगसूत्र के 'शस्त्रपरिज्ञा' अध्ययन पर 'विवरण' लिखा था, किन्तु वर्तमान में यह अनुपलब्ध है।
(५) आचार्य शीलांक- इनका समय विक्रम की नवींदसवीं शताब्दी है। प्रभावकचरित्र के अनुसार इन्होंने नौ अंगों पर टीकाएँ लिखी; किन्तु वर्तमान में इनकी दो ही रचनाएँ मिलती हैं-(१) आचारांगवृत्ति और (२) सूत्रकृतांगवृत्ति।
(६)वादिवेताल शांतिसूरि- इनका जन्म राघनपुर के निकट
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