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[जैन आगम : एक परिचय वि.सं.१३३४ से पहले का है। इन्होंने एक शब्द के अन्य भाषाओं के पर्याय दिये है; जैसे वृक्ष शब्द को प्राकृत में रूक्ख, मगध में ओदण, लाट में कूर, दमिल-तमिल में चोर और आन्ध्र में इडाकु कहा जाता है।
दशवैकालिक पर अगस्त्यसिंह स्थविर ने भी चूर्णि लिखी है। मुनि श्री पुण्यविजयजी ने इनका काल विक्रम की तीसरी शताब्दी माना है। इन्होंने मूल का एक भी महत्वपूर्ण शब्द नहीं छोड़ा है, सभी पर व्याख्या की है। व्याख्या के लिए इन्होंने 'विभाषा' शब्द का प्रयोग किया है। ज्ञानाचार का स्पष्टीकरण करते हुए इन्होंने कहा है कि 'प्राकृत में निबद्ध सूत्र का संस्कृत रूपान्तर नहीं करना चाहिए क्योंकि व्यंजन में विसंवाद होने पर अर्थ में भी विसंवाद होता है।'
चूर्णि-साहित्य की विशेषता- आगम-साहित्य में श्रद्धा का प्रमुख स्थान है किन्तु चूर्णि-साहित्य में तर्क की प्रधानता दृष्टिगत होती है। दार्शनिक विषयों की चर्चा भी मिलती है। इसमें लघु कथाओं के माध्यम से मूल विषय को स्पष्ट करने की शैली भी अपनाई गई । ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सामग्री को भी काफी स्थान मिला। चूर्णि-साहित्यकारों की रूचि संस्कृत भाषा के प्रयोग की ओर झुकी हुई दिखती है। अब तक आगम-साहित्य की भाषा प्राकृत ही थी किन्तु अब संस्कृत का भी प्रवेश होने लग गया।
टीका-साहित्य टीका-साहित्य का महत्व- टीकाओं का युग जैन-साहित्य
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