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________________ ६ [जैन आगम : एक परिचय ज्ञानी बनकर विश्व के समस्त प्राणियों की हित-कामना से धर्म का कथन करते हैं। उनका प्रवचन जीव-मात्र की कल्याणकामना से ही होता है । जैसा कि प्रश्नव्याकरणसूत्र (संवरद्वार) में कहा गया हैसव्वजीवरक्खणदयट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं । -संसार के चर-अचर समस्त जीवों की रक्षा और दया (अनुकम्पा)की भावना से भगवान प्रवचन देते हैं। जैन आगमों की विशेषता जैसा कि बताया जा चुका है कि जैन आगमों के प्रणेता वीतराग महापुरुष होते हैं, जिन्हें न यश की कामना होती है, न पूजा-सत्कार की; वे तो प्राणीमात्र की हितकामना से ही धर्म का मार्ग बताते हैं और वह भी सरल-सुगम भाषा में; यही कारण है कि जैन आगमों में कहीं भी न वाणी-विलास के दर्शन होते हैं; न कल्पना की उड़ानें दृष्टिगोचर होती हैं और न बुद्धि को चकितभ्रमित करने वाले क्रियाकांड अथवा चमत्कारों का वर्णन ही मिलता है। वहाँ तो सरल भाषा में आत्मोत्थान का मार्ग प्ररूपित है, आत्मा की उन्नति की प्ररेणा है। जैन आगमों में आत्मा-परमात्मा के बारे में सूक्ष्मतम चिन्तन, साधना का अनुभूत मार्ग और प्रत्येक प्राणी के कल्याण-मार्ग का उपदेश ही प्राप्त होता है। उनमें साधक-जीवन का सजीव और यथार्थ दृष्टिकोण चित्रित है और है जीवनोत्थान की प्रबल प्रेरणा। उनमें आत्मा की शाश्वत सत्ता का उद्घोष करके उसकी सर्वोच्च विशुद्धि का मार्ग बताया गया है। उस विशुद्धि के लिए संयम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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