SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ [जैन आगम : एक परिचय समाधान यह है कि ये आगम भगवान महावीर की मूलवाणी हैं अथवा मूलवाणी से सम्मत हैं । इनमें प्रक्षिप्त अंश या तो बिल्कुल ही नहीं है अथवा न के बराबर है। इन आगमों को प्रमाणभूत मानने का कारण यही है। प्रकीर्णक-साहित्य प्रकीर्णक आगम साहित्य- नन्दीसूत्र के टीकाकार मलयगिरि के अनुसार प्रकीर्णक (पइन्ना) वे कहलाते हैं जिनकी रचना तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण करके श्रमण करते हैं। प्रकीर्णकों की संख्या १४००० मानी गयी है, लेकिन वर्तमान में उपलब्ध प्रमुख प्रकीर्णक दस हैं। इनका संक्षिप्त परिचय निम्न है: (१) चतुःशरण- इसका दूसरा नाम 'कुशलानुबन्धि अध्ययन' भी है। ये चार ही शरण माने गये हैं। इसीलिए इसका नाम चतु:शरण है। इन चारों के अतिरिक्त संसार में कोई भी शरणभूत नहीं है, यही इस आगम का हार्द है।। प्रारम्भ में षडावश्यक पर प्रकाश डाला गया है। इसमें बताया है कि सामायिक से चारित्र की विशुद्धि होती है , चतुर्विशतिजिनस्तवन से दर्शन की विशुद्धि होती है, गुरुवन्दन से ज्ञान निर्मल होता है, प्रतिक्रमण से ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तीनों की विशुद्धि होती है, कायोत्सर्ग से तप की विशुद्धि होती है और प्रत्याख्यान से वीर्य (पण्डितवीर्य) की शुद्धि होती है। इस आगम के रचयिता वीरभद्र माने जाते हैं। (२) आतुरप्रत्याख्यान (आउरपच्चक्खाण)- यह प्रकीर्णक मरण से सम्बन्धित है। इसलिए इसे 'अन्तकाल प्रकीर्णक' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy