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माहा .
जैन आगम : एक परिचय]
उपदेशात्मक-अध्ययन १, ३, ४, ५, ६ और १० ।।
आचारात्मक-अध्ययन २, ११, १५, १६, १७, २४, २६, ३२ और ३५।
सैद्धान्तिक-अध्ययन २८, २९, ३०, ३१, ३३, ३४ और ३६।
परिमाण- उत्तराध्ययन में ३६ अध्ययन हैं । मूल पाठ २१०० गाथा प्रमाण है । १६५६ पद्यसूत्र हैं और ८९ गद्यसूत्र हैं।
प्रथम अध्ययन का नाम विनय है। विनय को जिनशासन का मूल बताया गया है और अनुशासन का महत्व प्रदर्शित किया गया है।
दूसरा अध्ययन परीषह है। इसमें साधु को समभावपूर्वक २२ परीषहों को सहन करने की प्रेरणा दी गयी है।
तीसरे चतुरंगीय अध्ययन में मानवता, धर्मश्रवण, श्रद्धा व तप-संयम में पुरूषार्थ-इन चार दुर्लभ बातों का निरूपण हुआ है।
चौथे असंस्कृत अध्ययन में संसार की क्षणभंगुरता बताकर साधक को भारंड पक्षी के समान अप्रमत्त रहने का उपदेश है।
पाँचवें अध्ययन का नाम अकाममरणीय है। इसमें यह बताया गया है कि मृत्यु भी एक कला है। पण्डितमरण करने वाले को बार-बार मरण नहीं करना पड़ता । .. छठवें अध्ययन 'क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय' में श्रमण के बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थ त्याग की प्रेरणा है।
सातवें एलय (उरब्भिय) अध्ययन में पाँच कथाएँ हैं। इन कथाओं द्वारा प्रेरणा दी गयी है।
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