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जैन आगम-परिचय
शास्त्र का महत्व आत्मा में विश्वास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है। इसके लिए वह अपनी आत्मा को पवित्र एवं दोषरहित बनाकर जन्म-मरण के चक्र से सदैव के लिए मुक्त होने की इच्छा रखता है। इस मुक्ति-प्राप्ति के लिए विशिष्ट साधना अपेक्षित होती है। संयम (इन्द्रिय-निग्रह), तपस्या, ध्यान, स्वाध्याय, परमात्म-स्वरूप का चिन्तन आदि इस विशिष्ट साधना के ही मार्ग है । इस साधना-मार्ग को सही ढंग से समझने और विधिपूर्वक साधना करने के लिए साधक को गुरू के मार्गदर्शन की अत्यन्त अपेक्षा रहती है । गुरू भी जो मार्गदर्शन साधक अथवा शिष्य को देते है, उसका आधार शास्त्रज्ञान ही होता है। इसलिए साधना की शुद्धि, परिपूर्णता, सफलता और ध्येय- प्राप्ति के लिए शास्त्रज्ञान ही प्रमुख आधार है। ___भारत ही नहीं, समस्त संसार के सभी धर्म-सम्प्रदायों में जितनी भी साधना-पद्धतियाँ प्रचलित हैं, उन सभी के आधार उन धर्म-सम्प्रदायों के शास्त्र हैं। उन शास्त्रों के आधार पर ही वे साधना-पद्धतियाँ प्रचलित हुई हैं और अभी तक चल रही हैं।
शास्त्र का अर्थ ही है-जो आत्मा पर शासन करना सिखाये, आत्म-शिक्षा की प्रेरणा दे, वह शास्त्र है।
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