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प्रकाशकीय
मानव संसार का सर्वाधिक विकसित प्राणी है। मानव के अतिरिक्त अन्य सभी प्राणी अपनी प्रकृति के अनुसार स्वयं के अनुकूल आहार का अन्वेषण कर उसका उपयोग करते हैं। मानव अपनी विकसित बुद्धि और कार्य क्षमता का उपयोग कर आहार उत्पन्न करता है। वह ऐसे उत्पादित तथा प्रकृति में स्वत: उपलब्ध आहार को विभिन्न क्रियाओं द्वारा अपनी रुचि के अनुसार अपने भोजन का अंग बनाकर उपयोग करता है।
कहा गया है- स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग रहता है। अतः भोजन शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है, लेकिन वही भोजन शरीर के लिए लाभप्रद है जो सही समय पर ग्रहण किया जाता है। शारीरिक विज्ञान के अनुसार वैसे तो शरीर के सभी अंगों में प्राणऊर्जा का प्रवाह चौबीसों घंटे होता है, परन्तु सभी समय सभी अंगों में एक समान नहीं होता है। प्रत्येक अंग कुछ निश्चित समय के लिए प्रकृति से प्राप्त अधिकतम प्राणऊर्जा के कारण अधिक सक्रिय होता है और यही कारण है कि चौबीस घंटे व्यक्ति की एक जैसी स्थि िनहीं रहती है। अतः प्रकृति के अनुरूप अपनी दिनचर्या को निर्धारित और संचालित करने से शारीरिक क्षमताओं का अधिकाधिक उपयोग हो सकता है। शरीर का जो अंग जिस समय सर्वाधिक सक्रिय हो उस समय उस अंग से सम्बन्धित कार्य करने से सर्वाधिक लाभ हो सकता है।
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