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________________ ( 38 ) (२) भारतीय नारी संस्कारों की जननी है। बच्चों को बचपन में जैसे संस्कार दिए जाते हैं वे उन संस्कारों का जीवनभर अनुसरण करते हैं। एक बार एक श्रावक अपने दस और तेरह वर्ष के दो पुत्रों को लेकर उपाश्रय में आये। उनको पू. बड़े महाराज साहेब के दर्शन करने थे। बड़े महाराज श्री आराम कर रहे थे, इसलिए वे मेरे पास बैठे। मैंने पूछा 'आपको क्या काम हैं?' उन्होंने कहा कि ये दोनों बालक एक वर्ष के लिए प्रतिदिन गरम पानी, परमात्मपूजा और रात्रिभोजन त्याग की प्रतिज्ञा पू. बड़े महाराज साहेब के मुखारविंद से लेना चाहते हैं। “मैंने कहा कि 'एक वर्ष के लिये क्यों जीवनभर के लिये दिला दीजिए।' उन श्रावक जी ने कहा कि, जन्म होने के बाद आज तक कभी रात्रिभोजन किया नहीं और भविष्य में भी करने की भावना नहीं है। परन्तु प्रतिज्ञा हर वर्ष दिलाते हैं। जन्म के ४० दिन के बाद आज तक पूजा के बिना एक दिन भी गया नहीं। छोटे थे तब रोज नहला के पूजा के कपड़े पहनाकर मंदिर ले जाते थे। एक तिलक करवाकर तुरन्त घर भेज देते थे। जिससे कपड़े खराब होने और आशातना होने का प्रसंग न आए। जन्म के बाद कभी भी कच्चा पानी पीया नहीं।' गाजे-गाजे छे, महावीर नुं शासन गाजे छ।' आज के समय में भी ऐसे उजले दूध जैसे राजहंस जैसे बालक जैन संघ में मौजूद हैं। अपना संघ ऐसे राजहंसों से और जन्म देने वाले मान सरोवर जैसे माता-पिता से उज्ज्वल एवं पवित्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002109
Book TitleRatribhojan Tyag Avashyak Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSthitpragyashreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2009
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Literature, & Paryushan
File Size3 MB
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