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जिसके कारण कभी-कभी गंभीर बीमारियाँ हो जाती हैं तथा विषैले जन्तुओं के कारण प्राणों से भी हाथ धोना पड़ सकता है।
आचार्य हेमचन्द्र ने रात्रिभोजन से होने वाले तात्कालिक दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए कहा है कि रात्रि में भोजन करने से उसमें बहुत से जीव गिर जाते हैं और उन जीवों का भक्षण होने से हमारे शरीर एवं मन को कई प्रकार से आघात पहुँचता है। जैसे१. अंधकार में यदि भोजन के साथ चींटी आ जाती है तो बुद्धि
नष्ट होती है। २. यदि भोजन में मक्खी आ जाती है तो तत्काल वमन हो
जाता है। ३. चूँ-भक्षण से जलोदर जैसा भयंकर रोग पैदा हो जाता है। ४. यदि भोजन में मकड़ी आ जाए तो कुष्ट महाव्याधि उत्पन्न हो
जाती है। ५. यदि केश मिश्रित आहार खाने में आ जाए तो स्वर भंग हो
जाता है और गला बैठ जाता है। ६. कांटा, कील, लकड़ी का टुकड़ा भोजन के साथ गले में अटक
जाये तो मृत्यु की संभावना भी बनती हैं।२६
इस प्रकार रात्रिभोजन में अनेक तरह के प्रत्यक्ष रोग और दोष रहे हुए हैं। अतः अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान व्यक्ति को रात्रिभोजन का त्याग अवश्यमेव करना चाहिये।
प्राचीन काल में रात्रिभोजन त्याग जैनत्व की एक पहचान थी कि जैन वही है जो रात्रि में भोजन नहीं करता, किन्तु आज
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