________________
तेरा तुझको अर्पण मोह उदये अमोही जेहवा, शुद्ध निज साध्य लयलीन रे । देवचन्द्र तेह मुनि वंदिये, ज्ञानामृत रसपीन रे ।।
आगमज्योति, आशुकवयित्री, आगममर्मज्ञा प्रवर्तिनी महोदया पूज्या सज्जनश्रीजी म. सा.
के पादारविन्दों में सादर समर्पित।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org