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________________ (14) जैनेतर ग्रन्थों की दृष्टि से रात्रिभोजन निषेध जैन परम्परा में तो रात्रिभोजन-वर्जन का स्पष्ट आदेश है ही, किन्तु वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में भी रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। 'मार्कण्डेयपुराण' में मार्कण्डेय ऋषि ने रात्रिभोजन को मांसाहार के समान कहा है रात्रौ अन्नं मांस समं प्रोक्तम् मार्कण्डेय महर्षिणा । जैनेतर ग्रन्थों में नरक के चार द्वार बताये गये हैं१. रात्रिभोजन, २. परस्त्रीगमन, ३. अचार भक्षण और ४. अनन्तकाय का भक्षण। इन चार द्वारों में रात्रिभोजन को प्रथम स्थान पर रखा है।२६ महाभारत में कहा है कि जो लोग मद्यपान करते हैंशराब पीते हैं, मांसाहार- मांस, मछली, अण्डे का भक्षण करते हैं, रात को भोजन करते हैं और कन्दमूल-अनन्तकाय का भक्षण करते हैं उनकी तीर्थयात्रा जप-तप आदि अनुष्ठान निष्फल होते हैं। यजुर्वेद में वर्णन है कि हे युधिष्ठिर! देव हमेशा दिन के प्रथम प्रहर में भोजन करते हैं, ऋषि-मुनिजन दिन के दूसरे प्रहर में भोजन करते हैं, पितर लोग तीसरे प्रहर में भोजन करते हैं और दैत्य दानव यक्ष, एवं राक्षस संध्या के समय भोजन करते हैं इन सभी देवादि के भोजन का समय जानकर भी जो रात्रिभोजन करता है, वह अनुचित करता है। रात्रिभोजन वास्तव में अभोजन है। योगवासिष्ठ में कहा गया है कि विशेषत: चातुर्मास में जो रात्रिभोजन का त्याग करता है, उसके इहलोक और परलोक में सभी मनोरथ पूरे होते हैं। सामान्य दिन में पाप नहीं करना और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002109
Book TitleRatribhojan Tyag Avashyak Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSthitpragyashreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2009
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Literature, & Paryushan
File Size3 MB
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