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________________ (9) आ जाते हैं और चिराग आदि की लौ पर जलकर मर जाते हैं अर्थात् रात्रि में भोजन करना हिंसा को बढ़ावा देना है। उत्तराध्ययनसूत्र' में श्रमण जीवन के कठोर आचार का निरूपण करते हुए स्पष्ट बताया है कि प्राणातिपातविरति आदि पाँच सर्वविरतियों के साथ ही रात्रिभोजन त्याग अर्थात् रात्रि में सभी प्रकार के आहार का वर्जन करना चाहिए और यह व्रत महाव्रतों की तरह ही दृढ़ता से पालन किया जाता है। महाव्रतों के अपवाद प्राप्त होते हैं पर रात्रिभोजनविरमण व्रत का कोई अपवाद नहीं है। रात्रिभोजन - विरमण व्रत महाव्रतों की सुरक्षा के लिए है । एतदर्थ ही महाव्रतों को मूलगुण और रात्रिभोजनविरमण को उत्तरगुण में गिना है। मूलगुण और उत्तरगुण के भेद को स्पष्ट करने के लिए ही प्राणातिपात विरमण आदि को महाव्रत और रात्रिभोजन - विरमण को व्रत कहा है। यहाँ पर यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि श्रमण के लिए जैसे महाव्रत का पालन करना आवश्यक है उसी प्रकार रात्रिभोजन विरमण व्रत का पालन करना भी अनिवार्य है। रात्रिभोजन त्याग को अगस्त्यसिंहचूर्णि में मूलगुणों की रक्षा का हेतु बताया गया है। यही कारण है कि रात्रिभोजन- विरमण को मूलगुणों के साथ प्रतिपादित किया गया है। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य' में लिखा है कि रात्रिभोजन नहीं करने से अहिंसा महाव्रत का संरक्षण होता है। इससे वह समिति की भाँति उत्तरगुण है, पर श्रमण के लिए वह अहिंसा महाव्रत की तरह पालन करने योग्य है। इस दृष्टि से वह मूलगुण की कोटि में रखने योग्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002109
Book TitleRatribhojan Tyag Avashyak Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSthitpragyashreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2009
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Literature, & Paryushan
File Size3 MB
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