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पाँच बजे उठना और नौ बजे भोजन करना।
पाँच बजे भोजन करना और नौ बजे सो जाना ।।
हमारा उठना-बैठना, खाना-पीना इन सबका हमारे स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक सभी दृष्टियों से रात्रिभोजन हमारे लिए किसी भी प्रकार से ग्राह्य नहीं है।
रात्रिभोजन आवश्यकता या लापरवाही?
वर्तमान युग में ९०% लोग रात्रिभोजन करते हैं। हमारी वर्तमान जीवन शैली इसी प्रकार की हो गई है। पर क्या यह हमारे लिए जरूरी है? अंग्रेजी में एक कहावत है
"Early to bed and early to rise makes the man healthy, wealthy and wise" पर वर्तमान में "Late to bed and late to rise" वाली जीवन शैली बन गई है। हमारे दिन की शुरुआत ही गलत होती हो तो अन्य कार्य कैसे सही हो सकते हैं? पाश्चात्य परम्परा के प्रति बढ़ता हमारी रुझान और भौतिक जगत् की दौड़ में शामिल होने की हमारी होड़, इन सबने हमें सही मार्ग से बहुत दूर कर दिया है। हमारा सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन, एवं शाम का भोजन, इनमें से कोई भी सही समय पर नहीं होता।
। जैसा कि सुबह के नाश्ते के लिये प्रयुक्त होने वाला शब्द Break-fast स्वयं ही सूचित करता है- Break the fast यानि उपवास को तोड़ो अर्थात् जब उपवास हो उसके दूसरे दिन उस उपवास को छोड़ने या तोड़ने के लिए आहार ग्रहण करना Break
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