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तिलोयपण्णत्ती में कुलकर
तिलोयपण्णत्ती में १४ कुलकरों का वर्णन करते हुए प्राचार्य ने उस समय के मानवों की अपने-अपने समय में आई हुई समस्याओं का कुलकरों द्वारा किस प्रकार हल हुमा, इसका बड़े विस्तार के साथ सुन्दर ढंग से वर्णन किया है। वह संक्षेप में यहाँ दिया जा रहा है :
जब उस समय के मानवों ने सर्वप्रथम आकाश में चन्द्र और सूर्य को देखा तो किसी प्राकस्मिक घोर विपत्ति की प्राशंका से वे बड़े त्रस्त हुए । तब प्रथम कुलकर प्रतिश्रुति ने निर्णय करते हुए लोगों को कहा कि अनादिकाल से ये चन्द्र और सूर्य नित्य उगते एवं अस्त होते हैं पर इतने दिन तेजांग जाति के प्रकाशपूर्ण कल्पवृक्षों के कारण दिखाई नहीं देते थे। अब उन कल्पवृक्षों का प्रकाश कालक्रम से मन्द पड़ गया है, अतः ये प्रकट दृष्टिगोचर होते हैं । इनकी ओर से किसी को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है।
प्रथम मनु प्रतिश्रुति के देहावसान के कुछ काल पश्चात् सन्मति नामक द्वितीय मनु उत्पन्न हुए। उनके समय में 'तेजांग' जाति के कल्पवृक्ष नष्टप्राय हो गये । अतः सूर्यास्त के पश्चात् अदृष्टपूर्व अन्धकार और चमचमाते तारामण्डल को देखकर लोग बड़े दुःखित हुए। 'सन्मति' कुलकर ने भी लोगों को निर्भय करते हुए उन्हें यह समझाकर प्राश्वस्त किया कि प्रकाश फैलाने वाले कल्पवृक्षों के सर्वथा नष्ट हो चुकने से सूर्य के अस्त हो जाने पर अन्धकार हो जाता है और तारामण्डल, जो पहले उन वृक्षों के प्रकाश के कारण दृष्टिगोचर नहीं होता था, अब दिखने लगा है । वास्तविक तथ्य यह है कि सूर्य, चन्द्र और तारे अपने मण्डल में मेरु पर्वत की नित्य ही प्रदक्षिणा करते रहते हैं। इसमें भय करने की कोई बात नहीं है।
कालान्तर में तृतीय कुलकर 'क्षेमंकर' के समय से व्याघ्रादि पशु समय के प्रभाव से कर स्वभाव के होने लगे तो लोग बड़े त्रस्त हुए। 'क्षेमंकर' ने उन लोगों को व्याघ्रादि पशुत्रों का विश्वास न करने की और समूह बनाकर निर्भय रहने की सलाह दी।
इसी तरह चौथे कुलकर 'क्षेमंघर' ने अपने समय के लोगों को सिंहादि हिंसक जानवरों से बचने के लिये दण्डादि रखकर बचाव करने की शिक्षा दी।
पाँचवें कुलकर 'सीमंकर' के समय में कल्पवृक्ष मल्प मात्रा में फल देने लगे। प्रतः स्वामित्व के प्रश्न को लेकर उन लोगों में परस्पर झगड़े होने लगे तो 'सीमंकर' ने सीमा प्रादि की समुचित व्यवस्था कर उन लोगों को संघर्ष से बचाया।
___इन पांचों कुलकरों ने भोग-युग के समाप्त होने और कर्म-युग के प्रागमन की पूर्व सूचना देते हुए अपने-अपने समय के मानव समुदाय को प्रागे पाने वाले कर्म युग के अनुकूल जीवन बनाने की शिक्षा दी। अपराधियों के लिये ये 'हाकार' नीति का प्रयोग करते रहे।
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