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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [वै. सा. में परि. और उनका वंश-वर्णन
किन्तु जैन साहित्य ने तीर्थंकरों के सम्बन्ध में जो विवरण प्रागमों और इतिहास-ग्रन्थों में संजोये रखा है, उसे प्रामाणिक मानने में कोई सन्देह की गुंजायश नहीं रहती।
इतना ही नहीं 'हरिवंश' में श्रीकृष्ण की प्रमुख महारानी सत्यभामा की मझली बहिन वतिनी-दृढ़व्रता का भी उल्लेख है', जिसके विवाह होने का वहाँ कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है । दृढ़व्रता, इस गुण-निष्पन्न नाम से, सम्भव है कि वह राजीमती के लिये ही संकेत हो, कारण कि राजीमती से बढ़ कर व्रतिनी अथवा दृढव्रता उस समय के कन्यारत्नों में और कौन हो सकती है, जिसने केवल वाग्दत्ता होते हुए भी तोरण से अपने वर के लौट जाने पर आजीवन अविवाहिता रहने का प्रण कर दृढ़ता के साथ महावतों का पालन किया।
इतिहासप्रेमियों के विचारार्थ व पाठकों की सुविधा के लिये श्रीकृष्ण व श्री अरिष्टनेमि से सम्बन्धित यदुकुल के तुलनात्मक वंशवृक्ष यहाँ दिये जा
भगवान् अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण के जैन व वैदिक परम्परा के अनुसार वंशवृक्ष :
जैन परम्परा
।
सौरी
अन्धकवृष्णि
अन्धकवृष्णि
भोगवृष्णि
भोगवृष्णि
समृद्रविजय, प्रक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान्, प्रचल, धरण, पूरण, अभिचन्द, वसुदेव
श्री अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि, दृढ़नेमि
श्रीकृष्ण
बलराम
१ सत्यभामोत्तमा स्त्रीणां, व्रतिनी च दृढव्रता ।
[हरिवंश पर्व, प्र० ३८, श्लोक ४७]
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