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________________ भगवान् श्री सुविधिनाथ तीर्थकर चन्द्रप्रभ के पश्चात् नौंवे तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ हुए । इन्हें पुष्पदन्त भी कहा जाता है । पूर्वमव पुष्कलावती विजय के भूपति महापद्म के भव में इन्होंने संसार से विरक्त होकर मुनि जगन्नन्द के पास दीक्षा ग्रहण की और उच्चकोटि की तप-साधना करते हुए तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन किया। अन्त समय में अनशनपूर्वक काल कर वे वैजयन्त विमान में अहमिन्द्र रूप से उत्पन्न हुए। जन्म काकन्दी नगरी के महाराज सुग्रीव इनके पिता और रामादेवी इनकी माता थी। वैजयन्त विमान से निकलकर महापद्म का जीव फाल्गुन कृष्णा नवमी को मूल नक्षत्र में माता रामादेवी की कुक्षि में गर्भ रूप से उत्पन्न हुआ । माता ने उसी रात्रि में चौदह मंगलकारी शुभ स्वप्न देखे । महाराज से स्वप्न-फल सुनकर महारानी हर्षविभोर हो गई। गर्भकाल पूर्ण कर माता ने मंगसिर कृष्णा पंचमी को मध्य रात्रि के समय मूल नक्षत्र में सुखपूर्वक पुत्ररत्न को जन्म दिया। माता-पिता व नरेन्द्रदेवेन्द्रों ने जन्मोत्सव की खुशियां मनाईं। दस दिनों तक नगर में आमोद-प्रमोद का मंगल वातावरण बना रहा। बामकरण नामकरण के समय महाराजा सुग्रीव ने सोचा कि बालक के गर्भकाल में माता सब विधियों में कुशल रहीं, इसलिये इसका नाम सुविधिनाथ और गर्भकाल में माता को पुष्प का दोहद उत्पन्न हुआ, अतः पुष्पदन्त रखा जाय । इस प्रकार सुविधिनाथ और पुष्पदंत प्रभु के ये दो नाम प्रख्यात हुए।' १ कुशला सर्वविधिषु. गर्भस्थेऽस्मिन् जनन्यभूत् पुष्पदोहदतो दन्तोद्गमोऽस्यसमभूदिति । सुविधिः पुष्पदन्तश्चेत्यभिधानद्वयं विभोः । महोत्सवेन चक्राते, पितरौ दिवसे शुभे । त्रि० ३ प. ७ स० ४६।५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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