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प्राक्कथन
जैन आगमों में "अध्यात्म विद्या" के रहस्यों के साथ अनेक विद्या-शाखाओं के विषय में विशद विवेचन उपलब्ध है। विशेषतः भगवती सूत्र एक ऐसा आगम है जिसका समीक्षात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन किए जाने पर अनेक तथ्यों की जानकारी हो सकती है। अभी तक भी भारतीय विद्याओं के अध्ययन-क्षेत्र में इस दिशा में अधिक कार्य नहीं हुआ है। जैन विद्या के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले तब तक विषय के साथ सम्पूर्ण न्याय नहीं कर सकते जब तक जैन आगमों का गहराई से अध्ययन नहीं कर पाते।
जैन विश्व भारती एवं जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अन्तर्गत कुछ शोध-विद्वान् इस दिशा में प्रयत्न कर रहे हैं। हमारे धर्म-संघ के कुछ साधु-साध्वियां एवं समण-समणियां इस दृष्टि से अनुसंधान-कार्य में संलग्न हैं। इनमें से एक समणी चैतन्यप्रज्ञाजी ने अपने शोध-प्रबन्ध "Philosophical and Scientific Evaluation of Bhagavati Stutra" वर्तमान रूप “Scientific Vision of Lord Mahavira" (With Special Reference to Bhagavati Sutra) में भगवती के सिद्धांतों का न केवल दार्शनिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया है अपितु वैज्ञानिक दृष्टि से भी उनकी मीमांसा की है। यह प्रयास स्तुत्य है। इस शोध-प्रबन्ध से जिज्ञासु विद्वानों को चिन्तन एवं अनुसंधान के लिए कुछ ऐसे विषय प्राप्त हो सकते हैं जिनका महत्त्व दर्शन और विज्ञान दोनों क्षेत्रों में है।
मैं समणीजी के प्रति शुभाशंसा करता हूँ कि वह अपने अध्ययन को और गहरा बनाएं तथा जैन विद्या के इस अल्पज्ञात क्षेत्र का अवगाहन कर विद्वत्जगत् के सामने और अधिक उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करें।
लोकमान्य महर्षि आचार्य श्री महाप्रज्ञ
25/9/2004 सिरियारी, पाली (राज.)