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________________ ८९६ भगवती आराधना चदुहिं समएहिं दंड-कवाड-पदरजगपूरणाणि तदा । कमसो करेदि तह चेव णियत्तीदि चदुहिं समएहिं ॥२१०९।। 'चहि' चतुभिस्समयदण्डादिकं कृत्वा क्रमशो निवर्तते चतुभिरेव समयैः ।।२१०९।। काउणाउसमाईणामागोदाणि वेदणीयं च । सेलेसिमब्भुवेतो जोगणिरोधं तदो कुणदि ॥२११०॥ 'काऊण' नामगोत्रवेदनीयानां आयुषा साम्यं कृत्वा मुक्तिमभ्युपनयन् योगनिरोधं करोति ॥२११०॥ योगनिरोधक्रममाचष्टे बादरवाचिगजोगं बादरकायेण बादरमणं च । बादरकायंपि तधा रुंभदि सुहुमेण काएण ।।२१११।। वादरौ वाङ्मनोयोगी बादरकायेन रुणद्धि । बादरकाययोगं सूक्ष्मेण काययोगेन ॥२१११॥ तध चेव सुहुममणवचिजोगं सुहुमेण कायजोगेण । रुभित्तु जिणो चिट्ठदि' सो सुहुमकायजोगेण ॥२११२।। 'तध चैव' तथैव सूक्ष्मवाङ्ननोयोगी सूक्ष्मकाययोगेन रुणद्धि ॥२११२॥ सुहुमाए लेस्साए सुहमकिरियबंधगों तगो ताधे । काइयजोगे सुहुमम्मि सुहुमकिरियं जिणो झादि ।।२११३।। गा०-टी-~सयोगकेवली जिन चार समयोंमें दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण समुद्धात करके क्रमसे चार ही समयोंमें उसका संकोच करता है अर्थात् प्रथम समयमें दण्डाकार, दूसरे समयमें कपाटके आकार, तीसरे समयमें प्रतर रूप और चतुर्थ समयमें समस्त लोकमें व्याप्त हो जाते हैं। पांचवे समयमें पुनः प्रतररूप, छठे समयमें कपाटरूप, सातवें समयमें दण्डाकार आठवें समयमें मूल शरीरकार आत्म प्रदेश हो जाते हैं ।।२१०९।। गा-इस प्रकार नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मों की स्थिति आयुके समान करके मुक्तिकी ओर बढ़नेवाले सयोगकेवली जिन योगोंका निरोध करते हैं ।।२११०॥ ___ योगनिरोधका क्रम कहते हैं गा०-स्थूल काययोगमें स्थित होकर बादर वचनयोग और बादर मनोयोगको रोकते है और सूक्ष्म काययोगमें स्थित होकर स्थूल काययोगको रोकते हैं ।।२१११।। ___ गाo---उसी प्रकार सूक्ष्मकाययोगके द्वारा सूक्ष्म मनोयोग और सूक्ष्म वचनयोगको रोककर सयोगकेवली जिन सूक्ष्म काययोगमें स्थित होते हैं ॥२११२।। १. दि सुहमेण कायजोगेण -आ० । दि सो सुहुमे काइए जोगे -मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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