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________________ ८६६ भगवती आराधना सदभिसभरणा अद्दा सादा असलेस्स जिट्ट अवरवरा । रोहिणिविसाहपुणव्वसु तिउत्तरा मज्झिमा सेसा ।।१९८३।। 'णत्ता भागे रिक्खे' अल्पनक्षत्रे यदि क्षपकः कालं गतः सर्वेभ्यः शिवं भवति, मध्यमनक्षत्रे यदि मृतः अन्येष्वेको मृतिमुपैति, महानक्षत्रे यदि मृतो द्वयोर्भवति मरणं ॥१९८२-१९८३॥ गणरक्खणत्थं तम्हा तणमयपडिबिंबयं खु कादण । एक्कं तु समे खेत्ते दिवड्ढखेत्ते दुवे देज्ज ॥१९८४॥ ' 'गणरक्खणत्यं' गणरक्षणार्थ तस्मात्तृणमयं प्रतिविम्बकं कृत्वा मध्यमनक्षत्रे एकं दद्यात् । उत्तमनक्षत्रे प्रतिबिम्बद्वयं ॥१९८४॥ प्रतिबिम्बदानमाचष्टे तट्ठाणसावणं चिय तिक्खुत्तो ठविय मडयपासम्मि । विदियवियप्पिय भिक्खू कुज्जा तह विदियतदियाणं ॥१९८५।। 'तट्ठाणसावणं' मृतकपावें तत्प्रतिबिम्बं स्थाप्य त्रिकमुच्चै?षयेत्, तस्मिन्स्थाने द्वितीयोऽपित इति एकार्पणेऽयं क्रमः । द्वयोः प्रतिबिम्बयोरपणे द्वितीयततीयौ दत्ताविति त्रिः श्रावयेत ॥१९८५॥ मध्यम नक्षत्र में मरण होता है तो शेष साधुओंमेंसे एकका मरण होता है। यदि महानक्षत्र में मरण होता है तो दो का मरण होता है ॥१९८२॥ गा-शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, स्वाति, आश्लेषा, ज्येष्ठा ये जघन्य नक्षत्र हैं। रोहिणी, विशाखा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा भाद्रपद, उत्तराषाढ़ा ये उत्कृष्ट नक्षत्र हैं। शेष नक्षत्र मध्यम है ।।१९८३।। विशेषार्थ-पं० आशाधर जी ने कहा है, अल्प नक्षत्रसे मतलब है जो पन्द्रह मुहुर्त तक रहते हैं । ऐसे शतभिषक् , भरणी, आर्द्रा, स्वाति, आश्लेषा, ज्येष्ठा इन छह मेंसे एक नक्षत्र या उसके अंशमें मरण होनेपर सबका कल्याण होता है। जो नक्षत्र तीस मुहूर्त तक रहते हैं ऐसे अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वभाद्रपद, रेवती, इनमेंसे किसी एक नक्षत्र या उसके अंशमें मरण होनेपर एक अन्य मुनिकी भी मृत्यु होती है। जो नक्षत्र पैंतालीस मुहूर्त तक रहते हैं ऐसे उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, पुनर्वसु, रोहिणी, विशाखामेंसे किसी एक नक्षत्र या उसके अंशमें मरण होनेपर दो अन्य मुनियोंकी भी मृत्यु होती है ॥१९८३॥ गा०-इस लिये संघकी रक्षाके अभिप्रायसे तृणोंका पुतला बनाकर यदि मध्यम नक्षत्रमें मरण हुआ है तो उसके साथ एक पुतला देवे । यदि उत्तम नक्षत्रमें मरण हुआ तो उसके साथ दो पुतले देवें ॥१९८४॥ गा०-टी०-मृतकके पासमें उस पुतलेको स्थापित करके तीन बार उच्च स्वरसे घोषणा करे कि मैंने उस दूसरेके स्थानमें यह दूसरा स्थापित किया है। जिसके स्थानमें यह पुतला स्थापित १, एषा गाथा नास्ति 'आ' प्रती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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