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________________ विजयोदया टीका ८६३ 'गोदत्था गृहीतार्थाः, कृतकरणा महाबलपराक्रमा महासत्त्वा बध्नन्ति छिन्दन्ति च करचरणं अष्ठप्रदेश वा ।।१९७०।। एवमकरणे को दोष इत्याशङ्कायां दोषमाचष्टे जदि वा एस ण कीरेज्ज विधि तो तत्थ देवदा कोई । आदाय तं कलेवरमुट्ठिज्ज रमिज्ज बाधेज्ज ॥१९७१।। 'जदि वा एस' यद्येष विधिर्न क्रियते कदाचिद्देवता क्रीडनशीला मृतकमादाय उत्तिष्ठेत् प्रधावेद्रमेत वा बाधयेद्वा तद्दर्शनात् वालादोनां चित्तसंक्षोभः पलायनं मरणं वा भवेत् ।।१९७१।। 'उयसयपडिदावण्णं उवण्णगहिदं तु तत्थ उवकरणं । सागारियं च दुविहं परिहारियमपरिहरियं बा ॥१९७२।। जदि विक्खादा भत्तपइण्णा अज्जा व होज्ज कालगदो । देउलसागारित्ति व सिवियाकरणं पि तो होज्ज ॥१९७३।। 'जइ विक्खादा भत्तपदिण्णा' यदि सर्वजनप्रकटा सल्लेखना आर्यिका वा भवेत् कालगता स्थानरक्षका गृहस्था वा तत्र शिविका कर्तव्या ।।१९७२।।१९७३।। तेण परं संठाविय संथारगदं च तत्थ बंधित्ता। उद्वैतरक्खणटुं गामं तत्तो सिरं किच्चा ॥१९७४।। तेन परं संस्थाप्य तेन मृतकेन संस्तरबन्धात्ततो मृतकबन्धनं कृत्वा प्रामाभिमुखं शिरः कृत्वा उत्थानरक्षणार्थ ॥१९७४।। शाली, महापराक्रमी, महासत्वशाली वे मुनि मृतकके हाथ, पैर या अंगूठेको बाँधते या छेदते हैं ।।१९७०॥ ऐसा नहीं करने में दोष कहते हैं गा०-यदि यह विधि न की जाये तो कोई मनो-विनोदी देवता मृतकको उठाकर दौड़ सकता है, क्रीडा कर सकता है, बाधा पहुँचा सकता है और उसे देखकर बालक आदि का चित्त चंचल हो सकता है, वे डरकर भाग सकते हैं और उनका मरण भी हो सकता है ।।१९७१।। क्षपकके उपचारके लिये उपकरणोंके प्रकार बतलाते हैं गा०-कुछ उपकरण तो वसतिकासे सम्बद्ध होते हैं। कुछ उपकरण गृहस्थ सम्बन्धी होते हैं । उनमेंसे कुछ त्याज्य होते हैं और कुछ त्यागने योग्य नहीं हैं ॥१९७२।। अब आर्यिकाओंकी संन्यास विधि कहते हैं गा०-यदि भक्त प्रतिज्ञा मरण करने वाली विख्यात आर्यिका हो या कोई गहस्था हो या स्थान की रक्षिका हो तो उसके लिये शिविका बनाना चाहिये ।।१९७३।। गा०—शिविका बनानेके पश्चात् उसके शवको शिविकामें रखकर संस्तरके साथ उसे १. एतां टोकाकारो नेच्छति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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