SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 924
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयोदया टीका ८५७ अविसुद्धभावदोसा कसायवसगा य मंदसंवेगा। अच्चासादणसीला मायाबहुला णिदाणकदा ॥१९४५॥ 'अविसुद्धभावदोसा' भावाः सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रपरिणामाः, तेषां दोषाः शङ्कादयः ते अविशुद्धा अनिराकृता यैस्ते अविशुद्धभावदोषाः । 'कसायवसिगा' कषायवशवर्तिनः । मन्दसंवेगाः । 'अच्चासादणसीला' गुणानां गुणिनां चापमानकारिणः । प्रचुरमायानिदानं गताः ।।१९४५॥ सुहसादा किंमज्झा गुणसायी पावसुत्तपडिसेवी । विसयासापडिबद्धा गारवगरुया पमाइल्ला ॥१९४६।। 'सुखसादा' सुखास्वादनपराः । 'किंमज्झा' किं मह्यं केनचिंदिति सर्वेषु संघकार्येष्वनादृताः । 'गुणसायो गुणेषु सम्यग्दर्शनादिषु शेरत इव निरुत्साहाः । 'पावसुत्तपडिसेवी' आत्मनः परेषां वा अशुभपरिणामस्य मिथ्यात्वासंयमकषायाणां प्रवर्तकं शास्त्रं पापसूत्रं निमित्तं, वैद्यक, कौटिल्यं, स्त्रीपुरुषलक्षणं, धातुवादः, काव्यनाटकानि, चौर शास्त्रं, शस्त्रलक्षणं, प्रहरणविद्याचित्रकलागान्धर्वगन्धयुक्त्यादिकं एतस्मिन् पापसूत्रे कृतादराभ्यासाः 'विसयासापडिबद्धा' अभिमतविषयपरिप्राप्त्यर्था या आशा तस्यां प्रतिबद्धाः, 'तिगारवगुरुका' गारवत्रयैर्गुरवः । 'पमाइल्ला' विकथादिपञ्चदशप्रमादसहिताः ।।१९४६॥ . समिदीसु य गुत्तीसु य अभाविदा सीलसंजमगुणेसु । परतत्तीसु य तत्ता अणाहिदा भावसुद्धीए ॥१९४७।। 'समिदीसु य' समितिषु गुप्तिषु च संयमगुणेषु भावनारहिताः परव्यापारेषु प्रवृत्ता' भावशुद्धाः वनादृताः ॥१९४७॥ उक्त प्रकारके क्षपक मरते समय सन्मार्गसे क्यों च्युत हो जाते हैं यह सात गाथाओंसे कहते हैं गा०-टी०-वे क्षपक सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्ररूप परिणामोंके जो शंका आदि दोष हैं उन्हें दूर नहीं करते हैं. कषायोंके वशवर्ती होते हैं, उनका संवेगभाव मन्द होता है, गुणोंका और गुणीजनोंका वे अपमान करते हैं, तथा माया और निदानशल्यकी उनमें प्रचुरता होती है ।।१९४५॥ गा०-टी०-वे सुखशील होते हैं, मुझे किसीसे क्या, ऐसा मानकर वे संघके सब कार्योंमें अनादरभाव रखते हैं, सम्यग्दर्शन आदि गुणोंमें उनका उत्साह नहीं होता। अपने और दूसरोंके अशुभ परिणामको तथा मिथ्यात्व, असंयम और कषायको बढ़ानेवाला शास्त्र पापसूत्र है । निमित्त शास्त्र, वैद्यक, कौटिल्यशास्त्र ( राजनीति ), स्त्री पुरुषके लक्षण बतलानेवाला कामशास्त्र, धातुवाद ( भौतिकी ), काव्य नाटक, चोरशास्त्र, शस्त्रोंका लक्षण बतलानेवाला शास्त्र, प्रहार करनेकी विद्या, चित्रकला, गांधर्व ( नाच गाना ), गन्धशास्त्र, युक्तिशास्त्र आदि पापशास्त्रोंमें उनका आदर होता है, उसीका वे अध्ययन करते हैं। इष्ट विषयोंकी आशामें लगे रहते हैं, तीन गारवमें आसक्त होते हैं । विकथा आदि पन्द्रह प्रमादोंमें युक्त होते है ।।१९४६।।। ___ गा०-समिति, गुप्ति और शील तथा संयमके गुणोंमें भावनासे रहित होते हैं। लौकिक कार्यो में संलग्न रहते हैं भावोंकी शुद्धिकी ओर ध्यान नहीं देते ॥१९४७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy