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________________ ८५२ भगवती आराधना सदिमंतो धिदिमंतो सड्ढासंवेगवीरियोवगया। . जेदा परीसहाणं उक्सग्गाणं च अभिभविय ॥१९३७।। 'सदिमतो' स्मृतिमन्तः धृतिसमन्विताः श्रद्धासंवेगवीर्यसहिताः परीषहाणां विजेतारः उपसर्गाणामभिभवितारः ॥१९३७॥ इय चरणमधक्खादं पडिवण्णा सुद्धदंसणमुवेदा । सोधिति ज्झाणजुत्ता लेस्साओ संकिलिट्ठाओ ॥१९३८।। 'इय चरणमधक्खादं' एवं यथाख्यातचारित्रं प्रतिपन्नाः शुद्धदर्शनमुपगता ध्यानयुक्ताः संक्लिष्टलेश्या विनाशयन्ति ॥१९३८।। सुक्कं लेस्समुवंगदा सुक्कज्झाणेण खविदसंसारा। उम्मुक्ककम्भकवया उविति सिद्धिं धुदकिलेसा ॥१९३९।। 'सुक्कं लेस्समुवगदा' शुक्ललेश्यामुपगताः शुक्लध्यानेन क्षपितसंसारा उन्मुक्तकर्मकवचा दूरीकृत फ्लेशाः सिद्धिमुपयान्ति ॥१९३९॥ एवं संथारगदो विसोघइत्ता वि दसणचरित्तं । परिवडदि पुणो कोई झायंतो अझरुद्दाणि ॥१९४०॥ ‘एवं संथारगदो' उक्तेन प्रकारेण संस्तरमुपगतोऽपि कृतदर्शनचारित्रशुद्धिरपि कश्चित्कर्मगौरवादातरौद्रपरिणतः पतति । तत्र दोषमाचष्टे ॥१९४०॥ . . . .. .. . . ज्झायंतो अणगारो अट्ट रुद्द च चरिमकालम्मि । जो जहइ सयं देहं सो ण लहइ सुग्गदि खवओ ।।१९४१।। गा.-वे शास्त्रोंका अनुचिन्तन करते हैं, धैर्यशाली होते हैं, श्रद्धा, संवेग और शक्ति से युक्त होते हैं। परीषहोंको जीतते हैं और उपसर्गोंको निरस्त करते हैं, उनसे अभिभूत नहीं होते ॥१९३७|| गा०-इस प्रकार शुद्ध सम्यग्दर्शन पूर्वक यथाख्यात चारित्रको प्राप्त करके ध्यान में मग्न होकर संक्लेशयुक्त अशुभ लेश्याओंका विनाश करते हैं ।।१९३८।। गा०--शुक्ललेश्यासे सम्पन्न होकर शुक्लध्यानके द्वारा संसारका क्षय करते हैं और कर्मोंके कवचसे मुक्त हो, सब दुःखोंको दूर करके मुक्तिको प्राप्त होते हैं ।।१९३९।। गा०-इस प्रकार संस्तरपर आरूढ़ होकर और सम्यग्दर्शन तथा सम्यकचारित्रको निर्मल करके भी कोई-कोई क्षपक कर्मोंकी गुरुता होनेसे आर्तरौद्र ध्यानपूर्वक रत्नत्रय रूप आराधनासे गिर जाता है ॥१९४०॥ ___ गा०-जो क्षपक साधु मरते समय आप्रौद्र ध्यानपूर्वक अपने शरीरको छोड़ता है वह सुगति प्राप्त नहीं करता ॥१९४१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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