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________________ ७७२ भगवती आराधना "गिरिकन्दरं च' गिरिकन्दरं अटवीं शलभूमिमुधिं । लोकान्तं प्रविश्यापि जीवो न मुच्यते । उदयागतेन कर्मणा ॥१७३१॥ दुगचदुअणेयपाया परिसप्पादी य जंति भूमीओ। मच्छा जलम्मि पक्खी णभम्मि कम्मं तु सव्वत्थ ॥१७३२॥ 'दुगचदुअणेगपादा' द्विचतुश्चरणादिकाः । 'परिसप्पादी य जंति भूमीओ' परिसप्पादयश्च यान्ति भूमावेव । मत्स्या जले पक्षिणो नभसि यान्ति । कर्म सर्वत्रगं ॥१७३२॥ रविचंदवादवेउव्वियाणमगमा वि अत्थि हु पदेसा । ण पुणो अस्थि पएसो अगमो कम्मस्स होइ इह ॥१७२३॥ 'रविचंदवादवेंउम्विगाणं' सूर्येण, चन्द्रेण, वातेन, देवश्चागम्यास्सन्ति प्रदेशाः । न कर्मणामगम्योऽत्र प्रदेशोऽस्ति लोके ।।१७३३॥ विज्जोसहमंतबलं बलवीरिय अस्सहत्थिरहजोहा । सामादिउवाया वा ण होंति कम्मोदए सरणं ।।१७३४॥ 'विज्जामंतोसधिबलवीरियं' विद्या स्वाहाकारान्ता तद्रहितता मन्त्रस्य । वीर्यमात्मनः शक्यत्यतिशयः । बलमाहारव्यायामजं शरीरस्य दाढय, अनीकबन्धः । सामभेददण्डोपप्रदानाख्याश्च हेतवो न शरणं ॥१७३४।। जह आइच्चमुदितं कोई बारंतओ जगे णत्थि । तह कम्ममुदीरंतं कोई वारंतओ जगे णत्थि ॥१७३५॥ 'जह आइच्चमुदितं' यथा दिनमणिमुदयाचलचूडामणितामुपयान्तं न निवारयति कश्चित् तथा समधिगतसहकारिकारणं कर्म न निषेधुमस्ति समर्थः ॥१७३५॥ गा०-पहाड़की गुफा, अटवी, पर्वत, भूमि, समुद्र, यहाँ तक कि लोकके अन्त तक चले जानेपर भी जीव उदयप्राप्त कर्मसे नहीं छूटता ॥१७३१।। गा०-दोपाये, चौपाये और अनेक पैर वाले सर्प आदि तो भूमिपर ही जाते हैं। मच्छ जलमें जाते हैं। पक्षी आकाशमें जाते हैं किन्तु कर्म सर्वत्र पहुंचता है। उसकी गति सर्वत्र है ॥१७३२॥ गा०-लोकमें ऐसे प्रदेश हैं जो सूर्य, चन्द्र, वायु और देवोंके द्वारा अगम्य हैं अर्थात् जहाँ ये नहीं जा सकते । किन्तु ऐसा कोई प्रदेश नहीं है जहाँ कर्मकी गति नहीं है ।।१७३३।। गा०-कर्मका उदय होनेपर विद्या, मंत्र, औषध, बल, वीर्य, घोड़े, हाथी, रथ, योद्धा, साम, दाम, दण्ड, भेद आदि उपाय शरण नहीं हैं ।।१७३४।। टी०-जिसके अन्तमें स्वाहाकार होता है उसे विद्या कहते हैं। और जिसके अन्तमें स्वाहाकार नहीं होता उसे मंत्र कहते हैं। वीर्य आत्माकी शक्तिको कहते हैं और बल आहार व्यायामसे उत्पन्न शरीरकी दृढ़ताको कहते हैं ॥१७३४॥ गा०-जैसे सूर्यको उदयाचलके मस्तकपर आनेको जगत्में कोई नहीं रोक सकता उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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