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________________ विजयोदया टीका 'सुमरणपुंखा' स्मरणपुन्खाः चितावेगा' विषयविषणालिप्ता रतिर्धारा येषां ते मनोधनुर्मुक्ताः इन्द्रियवाणाः पुरुषमृगं घातयन्ति ।।१३९४॥ तान्वाणान्पुरुषमृगहननोद्यतान्यतय एव वारयन्तीति कथयति धिदिखेडएहिं इदियकंडे ज्झाणवरसत्तिमंजुत्ता । वारंति समणजोहा सुणाणदिट्ठीहिं दट्टण ॥१३९५।। 'धिदिखेडएहि' धृतिखेटः इन्द्रियशरान्वारयन्ति ध्यानसत्वसमन्विताः। 'समणजोहा' श्रमणयोधाः सम्यग्ज्ञानदृष्ट्या दृष्ट्वा ॥१३९५।। गंथाडवीचरंतं कसायविसकंटया पमायमुहा । विद्धति विसयतिक्खा अधिदिदढोवाणहं पुरिसं ।।१३९६।। 'गंथाडवीचरंत' परिग्रहवने चरन्तं कपायविषकंटकाः प्रमादमुखा विध्यन्ति विषयस्तीक्ष्णा धृतिदृढोपानद्रहितं पुरुषं ॥१३९६।। संयतस्य पुनरेवंपरिकरस्य कषायविषकंटकाः किञ्चिदपि न कुर्वन्ति इत्याचष्टे सूरि-.. आइद्धधिदिदढोवाणहस्स उवओगदिद्विजत्तस्स । ण करिति किंचि दुक्खं कसायविसकंटया मुणिणो ॥१३९७।। 'आबद्धधिदिदढोवाणहस्स' आवद्धधृतिदृढोपानत्कस्य ज्ञानोपयोगसहितदृष्टेर्मुनेः स्वल्पमपि दुःखं न कुर्वन्ति कषायविषकंटकाः ॥१३९७॥ गा०-इन्द्रियाँ वाणके समान पुरुषरूपी हिरनको वींधती है। वाणमें पुंख होते हैं। भोगे हए भोगोंका स्मरण इनका पंख है। भोगोंकी चिन्ता इनका वेग है। रति इनको धारा-गति है जो विषयरूपी विषसे लिप्त है । ये इन्द्रियरूप बाण मनरूपी धनुषके द्वारा छोड़े जाते हैं ॥१३९४॥ ___ आगे कहते हैं कि पुरुषरूप मृगोंका घात करनेमें तत्पर उन बाणोंको संयमीजन ही निवारण करते हैं गा०-ध्यानरूपी श्रेष्ठ शक्तिसे युक्त श्रमण योद्धा सम्यग्ज्ञानरूप दृष्टिसे देखकर धैर्यरूप फलकके द्वारा इन्द्रियरूप वाणोंका वारण करते हैं ।।१३९५।। गा०-परिग्रहरूपी घोर वनमें कषायरूपी विषैले काँटे फैले हैं। प्रमाद उनका मुख है और विषयोंकी चाहसे वे तीक्ष्ण हैं । धैर्यरूपी दृढ़ जूतेको धारण किये विना जो उस वनमें विचरण करता है, उसे वे काँटे बींध देते हैं ॥१३९६।। आगे कहते हैं इस प्रकारके धैर्यरूपी जूता धारण करनेवाले संयमीका वे कषायरूप विषैले काँटे कुछ भी नहीं करते गा०-जिस मुनिने धैर्यरूपी दृढ़ जूता धारण किया है और जो सम्यग्ज्ञानोपयोग दृष्टिसे सम्पन्न है उसको वे कषायरूपी विषैले काँटे कुछ भी दुःख नहीं देते ॥१३९७।। १. फेडन्ति-मु० मूलारा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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