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भगवती आराधना सरजूए गंधमित्तो घाणिदियवसगदो विणीदाए ।
विसपुप्फगंधमग्घाय मदो णिरयं च संपत्तो ॥१३४९॥ 'सरजूए' सरय्वां नद्यां । 'गंधमित्तो' गंधमित्रो नाम भूपालः । 'मदो' मृतः । 'विणोदाए' विनीतापुरीपतिः । ‘घाणिदियवसगदो' घ्राणेन्द्रियवशंगतः । “विसगंधपुप्फमग्घाय' विषचर्णवासितपुष्पमाघ्राय । 'मदो' मृतः । गिरयं च संपत्तो नरकं च संप्राप्तः तीव्रविषयरागाज्जातेन कर्मभारेण ॥१३४९॥
पाडलिपुत्ते पंचालगीदसदेण मुच्छिदा संती ।
पासादादो पडिदा गट्ठा गंधव्वदत्ता वि ॥१३५०॥ पाटलिपुत्रे पांचालस्य गीतशब्देन मूर्छिता सती प्रासादात्पतिता नष्टा गन्धर्वदत्ता नामधेया गणिका ॥१३५०॥
माणुसमंसपसत्तो कंपिल्लवदी तधेव भीमो वि ।
रज्जब्भट्टो णट्ठो मदो य पच्छा गदो णिरयं ॥१३५१।। 'मानुसमंसपसत्तो' मानुषमांसप्रसक्तः काम्पिल्यपुराधिपो भीमो राज्यभ्रष्टो नष्टो मृतः पश्चान्नरकमुपयातः ।।१३५१॥
चोरो वि तह सुवेगो महिलारूवम्मि रत्तदिडीओ।
विद्धो सरेण अच्छीसु मदो णिरयं च संपत्तो ॥१३५२।। 'चोरो वि तह सुवेगो' सुवेगनामधेयश्चौरोऽपि युवतिरूपाकृष्टदृष्टिः शरैविद्धक्षणे मृतो नरकमुपगतः ॥१३५२॥
फासिदिएण गोवे सत्ता गिहवदिपिया वि णासक्के ।
मारेदूण सपुत्तं धूयाए मारिदा पच्छा ।।१३५३।। ‘फासिदिएण' स्पर्शनेन्द्रियेण हेतुना । 'गोवे सत्ता' आत्मीये गोपाले आसक्ता । 'गिहवदिपिया'
गा०-अयोध्यापुरीका राजा गन्धमित्र घाणेन्द्रियके वशमें होकर सरयू नदी में विषैले फूलकी गन्धको सूंघकर मरा और नरकमें गया ॥१३४९।।
विशेषार्थ-उसके बड़े भाईने भयंकर विषसे फूलको सुवासित करके दिया था। इसकी कथा बृहत्कथाकोशमें ११३ नम्बर पर है।
गा०-पाटलीपुत्र नगरमें गंधर्वदत्ता नामक गणिका पंचालके गीतके शब्द सुनकर मूछित हो महलसे नीचे गिरकर मर गई ॥१३५०॥
विशेषार्थ-इसकी कथा बृहत्कथाकोशमें ११४ नम्बर पर है।
गा०-कंपिला नगरीका राजा भीम मनुष्यके मांसका प्रेमी था। वह राज्यसे निकाला जाकर मरकर नरकमें गया ॥१३५३।।
विशेषार्थ-वृहत्कथाकोशमें ११५ नम्बर पर इसकी कथा है।
१. वदि गिहिणी-अ० आ० ।
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