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________________ विजयोदया टीका ६१९ गुणातिशयादेव उत्कृष्टता । निन्दितगुणः कुलीनोऽपि न पूज्यतेतरामन्यैः । अमान्येऽपि कुले सम्भूतो यदि गुणी स्यात् । उक्तं च संसारवासे भ्रमतो हि जंतोर्न चात्र किंचित्कुलमस्ति नित्यं । स एव नीचोत्तममध्यजातीः स्वकर्मवश्यः समुपैति तास्ताः ॥ नृपश्च दासः श्वपचश्च विप्रो दरिद्रवंशश्च समृद्धवंश: । चोराग्निदावाहित याचिता (2) च संजायते कर्मवशात्स एव ॥ को वाधिकारः सुकुलेषु नृणां का वा विहिसान्यकुलप्रसूतौ । कार्योऽधिकारो ननु धमं एव कार्या विहिंसापि च दुष्कृतेषु ॥ [ कामतं णीचागोदो होदूण लहइ सगिमुच्चं । जोणीमिदरसलागं ताओ वि गदा अनंताओ || १२२४ || 'कालमणतं णीचागोदो होदूण' अनन्तकालं नीचैर्गोत्रो भूत्वा । 'लभदि सगिमुच्चं जोणि' लभते सकृदुच्वैर्गोत्रं । कीदृशी 'इदरसलागं' इतरशलाकां । इतरा नीचैर्योनयः शलाका यस्या उच्चैर्येनेस्तां इतरशलाकां । 'ताओ वि' ता अपि 'अन्तराले लब्धा अपि उच्चैर्योनयः । 'गदा अनंताओ' अनन्ताः प्राप्ता एकेन जीवन || १२२४॥ ] ॥१२२३॥ उतना ही रहता है । ज्ञानादि गुणोंमें अतिशय होनेसे ही उत्कृष्टता होती है । कुलीन भी यदि निन्दित गुण वाला होता है तो दूसरे उसका आदर सम्मान नहीं करते । और अनादरणीय कुलमें उत्पन्न होकर भी यदि गुणी होता है तो दूसरे उसका सन्मान करते हैं। कहा है- संसारमें भ्रमण करते हुए प्राणीका कोई कुल स्थायी नहीं है । वही जीव अपने कर्मके अधीन होकर नीच, उत्तम अथवा मध्यम कुलोंमें जन्म लेता है । वही जीव अपने कर्मके वश होकर राजा और दास, चाण्डाल या ब्राह्मण, दरिद्र वंश वाला या सम्पन्न वंश वाला होता है तथा चोर, आग और दावानलसे पीड़ित तथा माँगने वाला होता है । उच्च कुलोंमें मनुष्योंको जन्म लेनेका गर्व कैसा ? और नीच कुलोंमें जन्म लेने पर घृणा कैसी ? गर्व करना हो तो धर्ममें ही करना चाहिए और घृणा भी पापसे करनी चाहिए || १२२३|| गा० - टी० - यह जीव अनन्तकाल तक नीच गोत्रमें जन्म लेकर एक बार उच्च गोत्रमें जन्म लेता है । इस प्रकार उच्च गोत्रकी शलाका नीच गोत्र है । शलाकासे मतलब है अनन्तकाल नीच गोत्र में जन्म लेकर एक बार उच्च गोत्रमें जन्म । नीच गोत्रोंके अन्तराल में प्राप्त उच्च गोत्र भी एक जीवने अनन्त बार प्राप्त किये हैं ||१२२४ ॥ Jain Education International विशेषार्थ - यद्यपि यह जीव संसारमें भ्रमण करते हुए अनन्तबार नीच गोत्र में जन्म लेता है तब कहीं एक वार उच्च गोत्रमें जन्म लेता है । तथापि अनन्त बार नीच गोत्रमें जन्म लेने पश्चात् एक वार उच्च गोत्रमें जन्म लेनेकी परम्पराको भी इसने अनन्त बार प्राप्त किया है। अर्थात् इस क्रमसे इसने उच्च गोत्र में भी अनन्त बार जन्म लिया है || १२२४ || १. अन्तराले अन्तराले लब्ध्वा अपि-ज० मूलारा० । ७८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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