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भगवती आराधना
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७३९ ७४९
७५२
७५३ ७५५ ७५६ ७५८ ७६१ ७६२ ७६७ ৩৬৮ ७७९ ७८५ ७८८
६६१ ६६४
७८९
विषय
पृ०
विषय . अवसन्न साधुका स्वरूप
६४ आहारमें गृद्धि होनेपर सम्बोधन पार्श्वस्थ साधुका स्वरूप
मैत्री आदि भावनाओंका उपदेश कुशील मुनिका स्वरूप
६४३ धर्मध्यानका स्वरूप यथाछन्द मुनिका स्वरूप
६४५ चिन्ता निरोधका नया अर्थ संसक्त मुनिका स्वरूप
६४६ आर्त और रौद्रध्यानके भेद इन्द्रिय और कषायोंको निन्दा ६४८ ध्यानकी सामग्री गृहवासके दोष
६४९ धर्मध्यानके चार भेदोंका स्वरूप तिथंच गतिमें दुःख
६५९ बारह अनुप्रेक्षा इन्द्रिय विषय आसक्तिमें राजा गन्धमित्र अध्रुव भावनाका वर्णन आदिके उदाहरण
६६० अशरण भावनाका वर्णन क्रोधके दोष
एकत्व भावनाका वर्णन मानके दोष
अन्यत्व भावनाका वर्णन मायाके दोष
६६६ संसार भावनाका वर्णन लोभके दोष
६६७ भव संसारका स्वरूप मृगध्वज तथा कार्तवीर्यका उदाहरण ६६९ द्रव्य परिवर्तनका स्वरूप इन्द्रियजयका उपाय
६७४ क्षेत्र संसारका स्वरूप क्रोधजयका उपाय
काल परिवर्तनका स्वरूप
६७५ भानजयका उपाय
६७८
भाव संसारका स्वरूप मायाजयका उपाय
६७९ वसन्त तिलका और धनदेवका उदाहरण लोभजयका उपाय
६८० देवगतिमें च्यवनका दुःख निद्राजयका उपाय
६०१ अशुभत्व अनुप्रेक्षाका कथन आलस्यके दोष
६८५ आस्रवानप्रेक्षाका कथन तपके गुण
६८६ मिथ्यात्व असंयम आदि आस्रव आचार्यके उपदेशसे क्षपक प्रसन्न होकर राग-द्वषका माहात्म्य वन्दना करता है
योग शब्दका अर्थ क्षपकको वेदना होने पर स्वयं या वैद्यसे अनुकम्पा पुण्यास्रवका द्वार चिकित्सा कराते हैं
अनकम्पाके तीन भेद क्षपक विचलित हो तो उसका उपाय ६९७ शुद्ध प्रयोगके दो भेद सुन्दर मिष्ट शब्दोंसे सम्बोधन ६९९ यतिका शुद्ध प्रयोग सुकुमाल, सुकौशल, गजकुमार सनत्कुमार ग्रहस्थका शुद्ध प्रयोग . आदिकी कथा सुनाते हैं।
मिथ्यात्वका संवर. कषायका संवर, और नरकगतिकी वेदनाका वर्णन
७११ इन्द्रियसंवर तियंच गतिकी वेदनाका वर्णन
७१८ प्रमादका संवर मनुष्य गति और देवगतिके कष्ट ७२५ गुप्ति संवरका कारण
७९० ७९१ ७९३ ७९८
८००
८०९ ८१० ८११ ८१३
८१८ ८१९ ८२२
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