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________________ विजयोदया टीका ५६१ _ 'तरुणो वि' तरुणोऽपि । वृद्धशीलो भवति । वृद्धं संश्रितोऽचिरात् लज्जया, शंकया, मानेन, अपमानभयेन धर्मबुद्धया च ।।१०७०॥ वड्ढो वि तरुणसीलो होइ णरो तरुणसंसिओ अचिरा । वीसंभणिव्विसंकों समोहणिज्जो य पयडीए ।।१०७१।।। 'वुढ्ढो वि' वृद्धोऽपि तरुणशीलो भवति तरुणसंश्रितः क्षिप्रं । 'विस्संभणिव्विसंको' विभंभेन निविंशकः 'समोहणिज्जो य' सह मोहनीयेन वर्तमानः । 'पयडीए' प्रकृत्या ।।१०७१।। सुंडयसंसग्गीए जह पादुसुंडओऽभिलसदि सुरं । विसए तह पयडीए संमोहो तरुणगोट्ठीए ॥१०७२॥ 'सुडयसंसग्गीए' यथा शौंडगोष्ठया । 'जह पादु सुरमभिलसदि' यथा पातु सुरामभिलषति । तथा ‘पयडीए संमोहो' तथा प्रकृत्या संमोहः । 'तरुणगोट्ठीए विसए अभिलसदि' तरुणगोष्ठ्या विषयानभिलषति ॥१०७२॥ तरुणेहिं सह वसंतो चलिंदिओ चलमणो य वीसत्थो । अचिरेण सइरचारी पावदि महिलाकदं दोसं ॥१०७३।। 'तरुणेहि' तरुणैः सह वसन् चलेन्द्रियश्चलचित्तः, सुष्ठु विश्वस्तः अचिरेण स्वरचारी । 'पावदि' प्राप्नोति । 'महिलाकवं दोसं' वनिताविषयं दोषं ॥१०७३॥ पुरिसस्स अप्पसत्थो भावो तिहिं कारणेहिं संभवइ । 'विरहम्मि अंघयारे कुसीलसेवाए ससमक्खं ॥१०७४।। 'पुरिसस्स' पुरुषस्य अप्रशस्तो भावस्त्रिभिः कारणैः संभवति । एकान्ते, अन्धकारे, कुसीलसेवादर्शनेन च प्रत्यक्षम् ।।१०७४।। गा०-तथा तरुण पुरुषोंकी संगतिसे वृद्ध पुरुष भी शीघ्र ही विश्वासके कारण निर्भय होनेसे और स्वभावसे ही मोहयुक्त होनेसे तरुणशील तरुणोंके स्वभाववाला हो जाता है ।।१०७१।। गा०-जैसे मद्य पीनेवालोंके संसर्गसे मद्यपी मद्यपान करनेकी अभिलाषा करने लगता है वैसे ही स्वभावसे ही मोही जीव तरुणोंके संसर्गसे विषयोंकी अभिलाषा करता है ।।१०७२।। गा०-जो तरुणोंकी संगतिमें रहता है उसकी इन्द्रियाँ चंचल होती हैं, मन चंचल होता है, और पूरा विश्वासी होता है। फलतः शीघ्र ही स्वच्छन्द होकर स्त्रीविषयक दोषोंका भागी होता है ।।१०७३॥ पुरुषमें (और स्त्रीमें भी) तीन कारणोंसे अप्रशस्तभाव अर्थात् काम सेवनकी अभिलाषा युक्तभाव होता है ___ गा०-एकान्तमें स्त्रीके साथ पुरुषका और पुरुषके साथ स्त्रीका होना, अन्धकारमें तथा स्त्री पुरुषके काम सेवनको प्रत्यक्ष देखनेपर ॥१०७४।। १. वियदम्मि मु०, मूलारा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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